विट्गेंस्टाइन के भाषा सिद्धांत का आलोचनात्मक परिक्षण | Vitgenstaain Ke Bhasha Siddhaant Kaa Alochnaatmal Parikshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30.35 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)10 हुई है. और इसकी सहाथता ते अनेक ऊप रिहार्य अस्पघ्टताएं दूर हुई हैं । कुमारी एन्तसकोम्ब के अनुसार रसेल और फेम द्वारा तर्कशशास्त्र के इस अंश के विकास के अमाव में यह सोघा भी नहीं जा सकता कि चिटर्गेन्स्टाइन अपने ग्रन्थ ट्रैक्टेटेस की घना मैं समर्य होता 1 चिटगैन्स्टाइन के मित्र और आचार्य बहुण्ड रतेल दूसरे दार्शनिक हैं जिन्होंने अपने च्याख्यानाँ दचनाओँ और चिवेचनां द्वारा चिटर्गेन्स्टाइन को माषा और तर्कशात्त्र के अछूते | अस्पूष्ट | केत्राँ मैं अनुसंधान के लिए सामर्थ्य पृरदान किया 1 चिटगैन्स्टाइन उत्पुकतापूर्वक रतेल के व्याख्यान को तुनता था और उनते लम्बी वातएं करता था |. सर्वपुथम रतेल ने यह अनुभव किया कि किती तर्कवाक्य की र्पाकरणात्मक संरचना उसकी तार्किक संरचना नहीं है और यह आमक हो सकती है | रतेल का उपर्युक्त सिद्धान्त विश्लेषी दर्शन के चिकास मैं बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ । रतेल की इस अनुभुत्ति के लिए चविटर्गैन्स्टाइन उनकी प्रशंसा करता है और कहता है कि-- यह रतेह की कुशलता है कि यह स्पष्ट हुआ कि यह आवश्यक नहीं कि वाक्य का पृकट तार्फिक रूप ही उसका वास्तथिक तार्किक स्वरूप हो | चिटर्गेन्स्टाइन के प्रथम प्रकाशित और पृततिद्ध गन्थ गु3८६३६०४ 1 00500 शोई1059छ4005... के अध्ययन से हमें यह ज्ञात होता है कि रसेल ने उसके थिधारीं को फतनी टुढ़ता के ताथ प्रभाषित छिया था 1 किन्तु रतेव को शीघ्र ही यह बोध हो गया कि वह एक साधारण छात्र नहीं है और वे उसे छात्र के स्थान पर मित्र और सहयोगी समझने लगे । उसने अपना प्रथम ग्रन्थ ट्रैक्टेटस अगस्त 1918 हए मैं लिखा जब वह धियना मैं सैनिक अवकाश पर था 1 1921 ई0 मैं यह. मुझ
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