शाकटायनं व्याकरण | Shakataayann Vyaakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० हिंदीप्रस्तविना. इसके छतिरिक्त महामुनि श्रीशाफटायनाचायके बनाये हुये उणादि खूघका अधिकार तो सब ही बैयाकरणोनि स्वीकार किया है। फाणि- निमद्दाराजने भी उणादिबहुछ एतावन्मात्र सूत्र बनाकर शाकटायनके उणादिसूलरपाठको स्वीकार किया है अंथात्‌ उन्होनें कोई नया उणादिसूत- पाठ नहिं रचा ।-इससे विद्वज्जनोंकी झाकटायनाचायेका शाब्दिकाअगण्यत्व स्पष्टतया ज्ञात होगा । -इस -उणादिसूत्रपाठपर उज्वल्दत्त माधवाचाये शाद्विनें टीका भी रची हैं । बोपदेवनें कबिकल्पट्ठुममें भी इन्द्र चन्द्र काशकृतन आपि- झलि शाकटायन पाणिनि अमर और जेनेंद्र इन आठ आचार्योको वैयाकरणोंमें प्रधान मानकर इनका जय मनाया है -यथा-- इन्द्रश्वह्ः काशकूत्स्सापिदा लि दाकटायमः । पाणिन्यमर जे नेन्द्रा जरन्सछादिंदा्द्का। ॥। चरन्तु शाकटायंग व्याकरण केवठमात्र इन्द्र सिद्धनन्दी और आंयेवज़ इन तीन ही आरायोका नामोछेख हुवा है जो कि ये तीनों ही आचाये जैन थे । क्योंकि दिगंबरलैसाचार्योका नियम है कि वे अपने अन्श्की पुष्टिकेलिये मिज्नघमोघठर्म्बीके. अन्थका प्रमाण क्दापि नहिं ठेते ओर न भिन्नघमोवठर्म्बीके श्रन्थपर टीका ही करते हैं ॥ इंसपरसे इन श्रीशा- क्टायनाचायेको वैदिक मानना निमूल है सो विद्वारनेको विचारना ववादिये। इस शब्दानुशासनपर निम्नछिखिट टीकार्थ मिठती हैं ॥ १ अमोघबत्ति।-- यदद पाणिनीयव्याकरणकी कांशिकावूंति की संमान विस्तृत और विशदे महांवृत्ति है १ जैनेन्द्रस्वामीके अपरनाम देवनंदी और पृज्यपाद अधिक प्रसिद्ध दैं। इनका बनाया डुबा व्याकरण भी अनेक टाकाओं -सद्ित #िदयमान है ॥॥। २ इन आठटों बेयाकरणोंमेंसे पाणिनिके. अतिरिक्त शेष वैयाकरणाचार्य जेस और बौद्ध दी सिद्ध द्वोते दें ॥




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