भारतदु - युगान निबंध | Bhartendu Yugan Nibandh
श्रेणी : निबंध / Essay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.52 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ | निबंध विस्तार के विषय मे यद्द विचार झ्रत्यंत स्थूल प्रमाणित हो सकता है । यहाँ एक संपति की दृष्टि से ही इस प्रकार की बात कही गईं है। पर इस विषय में निश्चित रूप से यह तो कद्दा ही जा सकता है कि निन्नघ का बाह्य रूप छोटा होना चाहिए श्र वह इतना छोटा हो कि थोड़े समय में ही पढकर समासत किया जा सके | निबंध के शतरग-दरशन से हमारा झभिप्राय उसके उन तत्वों वा विशिष्टताश्रो की विवेचना से है जिनका संविधान सच्चे अर्थों में द्द्दीत निबंध के लिए झ्ावश्यक माना गया है । इसमें तो सदेह नहीं कि गद्य-प्रधान झाघुनिक काल में निबंध साहित्य का एफ आग स्वीकृत हो चुका है । झ्तः निबंध में साहित्योचित विशेषताश्रो का होना श्रावश्यक है । उसमें वे तत्व होने चाहिए जिनके द्वारा श्रोता वा पाठक का मन रम सके जैसा कि साइद्ित्य द्वारा रमता है। निबघ मे मन रमाने की शक्ति है श्र शिष्ट साहित्यिक श्रोता झऔर पाठक का मन उसमें रमता है यदद निर्विवाद है । निबंध को लेकर इस निर्विवादिता के समथंन के लिए गद्य-प्रधान झ्राधघुनिक काल के साहित्य की. सामान्य प्रबत्तियों पर दृष्टि डालनी होगी । साहित्य का गदय-प्रधान श्राघुनिक काल बुद्धि-प्रधान काल है जिसका श्रारम ईसा की उन्नीमवी शती के चतुर्थ चरण से हो गया था श्र जो इस बीसवीं शती में पू्तः व्याप्त है । साहित्य का यह काल सामाजिक दृष्टि से इतना सघषमय रहा कि जो. साहित्पकार समाज और साहित्य का घनिष्ट सब्ध स्वीकार करते थे वे सघप-शाति के प्रयत्न के हेतु साहित्य में समाज के चित्रण पर विशेष दृष्टि रखने लगे। सघपं-शाति के लिए वे अपने साहित्य में सुभाव भी पेश करने लगे जो कभी साहित्य के झावरण में पूणतः टका रहा श्रौर कभी न उपदेशवाद के रूप मे विद्यमान था । इस प्रकार समाज पर अधिक दृष्टि होने के कारण और उसके सुधार की अआकाक्षावश इन साहित्यकारो की दृष्टि साहित्य के क्षेत्र मे बुद्धिवादी थी। ये लोग श्रपने साहित्य में समाज की समस्याओं को रखकर उसका समुचित इस पेश करने का प्रयत्न करते थे जिसका सबंध शवश्य दी बुद्धिवाद से है । साहित्य के श्राघुनिक काल मे गद्य की प्रधानता का विशेष कारण यह बुद्धिवाद ही है जिस गद्य द्वारा हमारी बुद्टि का प्रकाश सुविधापूवक हो जाता है । इस प्रकार के साहित्यकारों द्वारा साहित्य के उन श्रगो और उन शैलियों की गौणता प्रतिपादित की गईं जिनका संबंध छृदय से विशेष है । यही कारण है कि साहित्य के क्षेत्र मे इस काल मे काव्य-घारा का प्रवाह मद श्और क्षीण दिखाई पड़ता है । इन लोगो ने काव्य-रचना गौणुरूप से ग्रहण की श्रौर काव्य के ही समकक्ष प्रति छ्रित
User Reviews
No Reviews | Add Yours...