अयोध्या का इतिहास | Ayodhya Ka Etihas
श्रेणी : इतिहास / History, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38.62 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ अयोध्या का इतिहास बहराइच--यह पहिंले गन्धवंवन का भाग था और कुछ लोगों का विश्वास है कि बहराइच ज्रह्मयज्ञ का अपग्रंश है । किसी क्रिसी का यह भी कथन है कि यहाँ पहिले भर बसते थे । यह भी सुना गया है कि बहराइच बहरे आसाइश का बिगड़ा रूप है । यह पहिले सूय-पूजन का केन्द्र था और यहीं बालाक का मन्दिर श्औौर कुरड था और इसी जगह पर सैयद सालार ग़राज़ी मसऊद बाले सियाँ पीछे से गाड़े गये थे । कहते हैं कि बाले सियाँ की कब्र के नीचे अब भी बालाक कुण्ड है जिसका जल मोरियों द्वारा निकलता है और उससे कोढ़ी और अन्पे अच्छे हो जाते हैं । इस जिले में एक और पवित्र स्थान है जिसको सीताजोहार कहते हैं । गोडा--सम्भव है कि यह गौड़ ब्राह्मणों का आदि स्थान रहा हो । न्राह्मणों की दो श्रेणियां हैं १ पद्च गैड़ २ पश्च द्रविड़ । पद्चगोड़ में कान्यकुब्ज गैडड़ सैथिल उत्कल और सारस्वत त्रा्ण हैं । सखारस्वताः कान्यकुब्जाः गोड़मेथिलिकोत्कलाः । पश्च गोड़ा इति ख्याताः विन्ध्यस्योत्तरवासिनः ॥ यह ध्यान में रखने की बात है कि केवल एक ही श्रेणी के ज्नाह्मण इस जिले में अथवा परगना रामगढ़ गौड़ा में पाये जाते हैं । इन्हें सरयू- पारीण कहते हैं जो कान्यकुब्जों की एक स्वतंत्र शाखा है और कहा जाता है कि इन्हें सगवान रामचन्द्र जी इस देश में लाये थे। गौड़ न्नाह्मणों गौड़ राजपूतों एवं गोड़ कायस्थों को संख्या बहुत कम है और कम से कम गोड़ ज्राह्मण तो अपने को पश्चिम भारत के ही छाधिवासी मानते हैं। ः िकवाविकातत्णवक्कातावनाानणााणकाणकामानणणामागणकनाना के दान न 00680 01 00प्र्श0ाई
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