देवनागरी लिपि स्वरूप विकास और समस्याएँ | Devanagari Lipi Swarup Vikas Aur Samasyayem

Devanagari Lipi Swarup Vikas Aur Samasyayem by डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ वर्तमान विचारकों और विद्वानों में विशेष रूप से महामहिम डॉ. राजेंद्रप्रसाद डॉ ० राधाकृष्णन आचायें विनोबा भावे श्री० न० वि० गाडगील स्वातंत्यवीर वि. दा. सावरकर श्री. काकासाहेब कालेलकर आदि के प्रति हम आभारी हैं जिनके बहुमूल्य विचारों से इस पुस्तक की प्राण- प्रतिष्ठा हुई है । इसके अतिरिक्त डा. धीरेन्द्र वर्मा डॉ. रघुवीर श्री. के. का. शास्त्री पद्मभूषण डॉ. रा. ना. दांडेकर डॉ. ए. एम्‌. घाटगे डॉ. ना. गो. कालेलकर डॉ. भोलानाथ तिवारी डॉ. कृष्णदत्त बाजपेयी डॉ. रा. प्र. पारनेकर आचायें विश्वनाथप्रसाद मिश्र श्री. जेठालाल जोशी डॉ. भगी रथ मिश्र डॉ. चन्द्रभान रावत डॉ. म. त्य॑ं. सहस्रबुद्धे श्री. मो. क. सत्यनारायण श्रीमती अंबु जम्माल पं० हृषिकेश शर्मा शी सुरेशचन्द्र त्रिवेदी श्री दशरथ चे. आसनानी श्री राजनारायण मौयं श्री. शं. रा. दाते आदि के हम विशेष कृतन्ञ हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं से प्रस्तुत पुस्तक को बहुमूल्य बनाया है । मेजर एन. बी. गड्ढे के चीनी लिपि का देवनागरी में रूपान्तरण लेख का हिन्दी में अनुवाद कर डॉ. म. सी. करमरकर हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी ने हमें उपक्ृत किया है जिनके हम बड़े आभारी हैं । साथ ही हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन प्रयाग के अधिकारियों के प्रति हम विशेष कृतज्ञ हैं जिन्होंने बतंमान अक्षरों की उत्पत्ति और देवनागरी लिपि नामक स्व. रायबहादुर गौरीशंकर ह्वीराचन्द ओझा भर स्वर्गीय पं० केशवप्रसाद सिश्र के लेखों को प्रकाशित करने की स्वीकृत प्रदान की । इसके अतिरिक्त नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी केसरी संस्था एवं महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुना भारतीय हिन्दी परिषद राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा आदि संस्थाओं के भी हम अत्यन्त ऋणी हैं जिनका सामयिक सहयोग इस ग्रंथ के लिए उपादेय सिद्ध हुआ है । इस ग्रंथ के गुणों का श्रेय विद्वान लेखकों को हीहै। यदि इसमें कोई त्ुटियाँ रह गयी हैं तो हमारी हैं। हम अपने सुधी पाठकों से उनके लिए क्षमा-याचना करते हैं । श्रद्धेय




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