गाँधी जी के साथ सात दिन | Gandhi Jee Ke Sath Sat Din
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51.13 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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कुलभूषण - Kulabhushan
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२... .......... गांघीजी के साथ सात दिन
वक्त वह बड़े भले और मेहरबान मालम होते हैं । जब मैंने गांधीजी
को नमस्कार किया तो उन्हों ने मुझे इसी तरह हाथ जोड़ कर
विदा किया ।
मैं अपने कमरे में जाकर बारह से एक बजे तक सोया और
... जब « जागा, तो. पसीना पसीना हो रहा. था । मैंने पानी-घर मैं
जाकर दिनका तीसरा स्ान किया और खान क्या किया, कांसे के
बतेन से खड़े खड़े शरीर पर पानी डाल लिया ।
अभी तीन बजने में कुछ मिनट बाकी थे; कि मैंने धूप से तपी
हुई रेत और कंकरियों का सौ गज़ का फ्रासिला तय किया; और
गांधीजी कि कुटिया में पहुंचा । इस समय गरमी के मारे मुझे
ऐसा मालूम होता था; जैसे मरे सिर के अन्दर सब कुछ सूख
गया ह।
जब मैं गांधीजी के कमरे में पहुंचा, उस समय वहां छः सफद
खद्दर-धारी ज़मीन पर बैठे थे
एक काली साड़ी वाली औरत
... पे को रस्सी खींच रही थी। सारे कमरे मं सजावट को सिफ॑ एक.
:. ही चीज़ थी। और वह थी कांच में मढ़ी हुई इंसा मर्सीह की
.. तसवीर । इसके नीचे लिखा था--“ यह हमारी शांति ० है। ”...
गांधीजी एक चटाइपर बैंठे थे । यह ख़टाई उनका बिछोना भी था ।
असल हर पर
उनके पाछि एक तरब्ता था, और उर्स तफ़्ते के ऊपर एक पतलासा
:. तकिया था । वे सुनहरी फ्रेम का चश्मा पहने थे और फ़ाउंटेन. -
पेन से एक ख़त लिख रहे थे । इस समय वह आलुती पालती पा एप
मारकर वेठ थे । पास ही हाथसे बनाए हुए एक लकड़ी के चौखटे
:त
शी
ः कमर न सिकंदर पिन >ार डक ना दा
नम :-
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