गाँधी जी के साथ सात दिन | Gandhi Jee Ke Sath Sat Din

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Gandhi Jee Ke Sath Sat Din by कुलभूषण - Kulabhushanसुदर्शन - Sudarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२... .......... गांघीजी के साथ सात दिन वक्त वह बड़े भले और मेहरबान मालम होते हैं । जब मैंने गांधीजी को नमस्कार किया तो उन्हों ने मुझे इसी तरह हाथ जोड़ कर विदा किया । मैं अपने कमरे में जाकर बारह से एक बजे तक सोया और ... जब « जागा, तो. पसीना पसीना हो रहा. था । मैंने पानी-घर मैं जाकर दिनका तीसरा स्ान किया और खान क्या किया, कांसे के बतेन से खड़े खड़े शरीर पर पानी डाल लिया । अभी तीन बजने में कुछ मिनट बाकी थे; कि मैंने धूप से तपी हुई रेत और कंकरियों का सौ गज़ का फ्रासिला तय किया; और गांधीजी कि कुटिया में पहुंचा । इस समय गरमी के मारे मुझे ऐसा मालूम होता था; जैसे मरे सिर के अन्दर सब कुछ सूख गया ह। जब मैं गांधीजी के कमरे में पहुंचा, उस समय वहां छः सफद खद्दर-धारी ज़मीन पर बैठे थे एक काली साड़ी वाली औरत ... पे को रस्सी खींच रही थी। सारे कमरे मं सजावट को सिफ॑ एक. :. ही चीज़ थी। और वह थी कांच में मढ़ी हुई इंसा मर्सीह की .. तसवीर । इसके नीचे लिखा था--“ यह हमारी शांति ० है। ”... गांधीजी एक चटाइपर बैंठे थे । यह ख़टाई उनका बिछोना भी था । असल हर पर उनके पाछि एक तरब्ता था, और उर्स तफ़्ते के ऊपर एक पतलासा :. तकिया था । वे सुनहरी फ्रेम का चश्मा पहने थे और फ़ाउंटेन. - पेन से एक ख़त लिख रहे थे । इस समय वह आलुती पालती पा एप मारकर वेठ थे । पास ही हाथसे बनाए हुए एक लकड़ी के चौखटे :त शी ः कमर न सिकंदर पिन >ार डक ना दा नम :-




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