पंजाबी का कालजयी उपन्यास | Punjabi Ka Kalajayi Upanyas

Book Image : पंजाबी का कालजयी उपन्यास  - Punjabi Ka Kalajayi Upanyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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14 अब न बसों इह गाँव राजकर्णी और सतभराई आँगन में आकर फिर खिलखिला कर हँसने लगी । उन दोनों की हंसी सारे गाँव में अ्रसिद्ध थी । छोटी-सी बात पर हँसना आरम्भ कर देती हँसती ही रहती हंसती ही रहतीं - आधा-आधा दिन आधी-आधी रात हँसती रहती । चौधरी अल्लादित्ता को वो आज आना नहीं था और लड़कियों का विचार था कि सोहणे शाह भी अभी तक नहीं । हंसती-हंसती दोनों सहेलियाँ गाने लगीं - उच्चियों लम्बियाँ टालियाँ विच गुजरी दी पींग वे माहिया । पींग झुटेंदे दो जणे - आशिक ते माशुक वे माहिया । पींग झुटेंदे ढह पये हो गये चकनाचूर वे माहिया । ओर सोहणे शाह उनको गाते सुनता रहा । ज्वाले की लड़की का विवाह था और उसने सोचा दोनों वहीं से आ रहीं होंगी । जब किसी विवाह वाले घर गीत आरम्भ होते ये दोनों वहां जरूर गीत गाने के लिए जातीं ओर फिर कितनी-कितनी देर घर आकर भी गाती रहतीं । कभी कोई तान छेड़ देतीं कभी कोई गीत गुनगुनाने नगुनाने लगतीं । सोहणे शाह सोचता कि राजकर्णी और सतभराई दोनों जवान हो गयी थीं । अब वह उनके हाथ पीले कर देगा । अल्लादितता नेत्कभी इस बात की चिन्ता नहीं की थी । ऊपर-तले दो बरातें बुलवाकर वह निर्ित हो जायेगा । गली के पिछवाड़े बच्चे पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये जा रहे थे । इस बार ताई पारों उनके हत्थे चढ़ गयी - ताई पारो जो जगत-ताई थी जो हर समय पुरुषों के समान लाठी लेकर चलती थी । मर्द ओरतें बच्चे और बूढ़े सभी ताई पाये से डरते थे । यदि किसी से नाराज हो जाती तो भरे बाजार में खड़ी होकर वह भद्दी गालियों की बौछार करती जिन्हें सुनकर पुरुष भी धरती में गड़-गड़ जाते। और अब जबकि बच्चों ने ताई पारो को घेर लिया था न जाने कहाँ से वह तपी हुई आ रही थी पंजे झाड़कर बच्चों के पीछे पड़ गयी । ठहरो । तुम्हारी मां का पाकिस्तान-जिन्दाबाद निकालूं आगे-आगे बच्चे और पीछे-पीछे ताई पारो वे दूर गली का मोड़ मुड़ गये । बच्चे शोर मचाते हँसते और सहमे हुए लग भागते जाते पीछे-पीछे पारो पाकिस्तान को लाख-लाख गालियां देती हुई लाठी घुमाती ड़ती गयी । सोहणे शाह ने सोचा कभी पारो को समझा देमा कि वह पाकिस्तान के बारे में हँसी न उड़ाया करे । कहीं बात का बतंगड़ ही न बन जाय । उसने सुन रखा था कि शहर में इसी प्रकार हेंसी-मज़ाक में लोगों ने बेर मोल लिये थे । सामने गली मैं फिर पारो हांफती हुई गालियाँ देती आ रही थी । उसके पीछे-पीछे बच्चे शोर मचाते हुए पारो को चिढ़ा रहे थे ।




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