पंजाबी का कालजयी उपन्यास | Punjabi Ka Kalajayi Upanyas
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
34.23 MB
कुल पष्ठ :
422
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कर्त्तार सिंह दुग्गल - Kartar Singh Duggal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)14 अब न बसों इह गाँव राजकर्णी और सतभराई आँगन में आकर फिर खिलखिला कर हँसने लगी । उन दोनों की हंसी सारे गाँव में अ्रसिद्ध थी । छोटी-सी बात पर हँसना आरम्भ कर देती हँसती ही रहती हंसती ही रहतीं - आधा-आधा दिन आधी-आधी रात हँसती रहती । चौधरी अल्लादित्ता को वो आज आना नहीं था और लड़कियों का विचार था कि सोहणे शाह भी अभी तक नहीं । हंसती-हंसती दोनों सहेलियाँ गाने लगीं - उच्चियों लम्बियाँ टालियाँ विच गुजरी दी पींग वे माहिया । पींग झुटेंदे दो जणे - आशिक ते माशुक वे माहिया । पींग झुटेंदे ढह पये हो गये चकनाचूर वे माहिया । ओर सोहणे शाह उनको गाते सुनता रहा । ज्वाले की लड़की का विवाह था और उसने सोचा दोनों वहीं से आ रहीं होंगी । जब किसी विवाह वाले घर गीत आरम्भ होते ये दोनों वहां जरूर गीत गाने के लिए जातीं ओर फिर कितनी-कितनी देर घर आकर भी गाती रहतीं । कभी कोई तान छेड़ देतीं कभी कोई गीत गुनगुनाने नगुनाने लगतीं । सोहणे शाह सोचता कि राजकर्णी और सतभराई दोनों जवान हो गयी थीं । अब वह उनके हाथ पीले कर देगा । अल्लादितता नेत्कभी इस बात की चिन्ता नहीं की थी । ऊपर-तले दो बरातें बुलवाकर वह निर्ित हो जायेगा । गली के पिछवाड़े बच्चे पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये जा रहे थे । इस बार ताई पारों उनके हत्थे चढ़ गयी - ताई पारो जो जगत-ताई थी जो हर समय पुरुषों के समान लाठी लेकर चलती थी । मर्द ओरतें बच्चे और बूढ़े सभी ताई पाये से डरते थे । यदि किसी से नाराज हो जाती तो भरे बाजार में खड़ी होकर वह भद्दी गालियों की बौछार करती जिन्हें सुनकर पुरुष भी धरती में गड़-गड़ जाते। और अब जबकि बच्चों ने ताई पारो को घेर लिया था न जाने कहाँ से वह तपी हुई आ रही थी पंजे झाड़कर बच्चों के पीछे पड़ गयी । ठहरो । तुम्हारी मां का पाकिस्तान-जिन्दाबाद निकालूं आगे-आगे बच्चे और पीछे-पीछे ताई पारो वे दूर गली का मोड़ मुड़ गये । बच्चे शोर मचाते हँसते और सहमे हुए लग भागते जाते पीछे-पीछे पारो पाकिस्तान को लाख-लाख गालियां देती हुई लाठी घुमाती ड़ती गयी । सोहणे शाह ने सोचा कभी पारो को समझा देमा कि वह पाकिस्तान के बारे में हँसी न उड़ाया करे । कहीं बात का बतंगड़ ही न बन जाय । उसने सुन रखा था कि शहर में इसी प्रकार हेंसी-मज़ाक में लोगों ने बेर मोल लिये थे । सामने गली मैं फिर पारो हांफती हुई गालियाँ देती आ रही थी । उसके पीछे-पीछे बच्चे शोर मचाते हुए पारो को चिढ़ा रहे थे ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...