संस्कृत का भाषाशास्त्रीय अध्ययन | Sanskrit Ka Bhasashastriya Addhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ संस्कतका भाषादाखीय श्रध्ययन तरहका ध्वन्यात्मक पदरचनागत या वाक्यरचनागत परिवर्तन होता रहा है इसका वैज्ञानिक लेखा-जोखा देनेकी चेष्टा की जाती है तो यह ऐतिहासिक प्रणालीका आश्रय होगा । लेकिन अगर कोई अध्येता हिन्दी खड़ी बोली के यथास्थित रूपको लेकर ही उसकी ध्वनियोंका या पदरचनाका लेंखा- जोखा देना चाहे तो वह विवरणात्मक पद्धति होगी । ऐतिहासिक प्रणालीकें मध्ययनमें संबद्ध भाषाका विवरणात्मक अध्ययन स्वतः समाविष्ट हो जाता है । ३-तुलनात्मक पद्धति तुलनात्मक पद्धतिके अन्तगंत उपयुक्त दोनों पद्धतियोंका समाहार करते हुए ऐतिहासिक दृष्टिसि या पदरचनात्मक दृष्टिसे परस्पर सम्बद्ध दो या अधिक भाषाओंका तुलनात्मक अध्ययन किया जाता हैं। यही नहीं विभिन्न प्रकृति- की भाषाओंका भी तुलनात्मक अध्ययन किण जा सकता है । वेसे तुलनात्मक पद्धतिका प्रयोग अधिकतर एक ही भाषासे निकली हुई भाषाओंकी ध्वनियों पदरचना दाब्द-कोष तथा वाक्यरचनाकी समानताओं तथा असमानताओंके अध्ययनके लिए किया जाता है जैसे ब्रजभाषा तथा खड़ी बोलीका तुलनात्मक अध्ययन किया जाय या मैथिली और बंगालीका । इसी तरह संस्कृत ग्रीक ओर लैतिनका भी तुलनात्मक अध्ययन उदाहरणके रूपमे लिया जा सकता है । तुलनात्मक पद्धतिके अध्ययनने ही वस्तुत भाषाशास्त्रको १९ वीं झती- में जन्म दिया है । प्रीक लेतिन तथा संस्कृतकी अत्यधिक समानताओंने ही भारत 4ूर।पीय परिवारके तुलनात्मक व्याकरण 0०ए0&7७ ४€ छ1110- ०४४ को जन्म दिया था । इस प्रकारकी तुलनात्मक पृंद्धतिमें कुछ भी दोष रहे हों किन्तु इसका महत्त्व निषिद्ध नहीं किया जा सक्रता । आजके भाषा-वैज्ञानिकोंके मतानुसार जब हम अनेक भाषाओंकी तुर्जना करते समय उनकी समानताओंके आधारपर उनके परस्पर सम्बद्ध गा बात कहते हैं तथा उनके ##स्पर सम्बन्धपर ज़ोर देते हैं तो हर्मा एक वैज्ञानिक




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