मुगलकालीन भारत १५२६ से १८०३ तक | Mugal Kalin Bharat 1526 Se 1803 Tak

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आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव - Ashirbadi Lal Srivastava

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सर जदुनाथ सरकार - Sir Jadunath Sarakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५९६ ई० में भारतवर्ष की दशा--राजनीतिक अवस्था .. ३ अनेक प्रमुख पदों पर उसने अपने साथी-संगियों को ला बिठाया । मेदिनी राय के इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार से वहाँ के सुसलमान सरदार भड़क उठे और उन्होंने गुजरात के सुल्तान की सहायता से उसे पराजित कर निकाल बाहर करने का प्रयत्न किया । उधर मेदिनीराय ने भी मेवाड़ के राणा सांगा की सहायता ली । राणा ने महमूद द्वितीय को परास्त कर बन्दी बनाया और चितौड़ ले गया लेकिन राजपूती शान और उदरता के अनुकूल ही वड़ां जाकर उसने अपने राजबन्दी को मुक्त कर दिया भौोर ससम्मान उसका राज्य उसे वापस कर दिया । लेकिन यह उदारता भी मालवा की रक्षा नहीं कर सकी । राज्य के अन्दर अत्तविग्रह की आग भड़कती ही रही । शुजरात क गुजरात प्रान्त ने दिल्‍ली से अपना सम्बन्ध उस समय विच्छेद कर लिया था जब ४०१ ई० में जफरखाँ जो मुसलमान धमें में दीक्षित हुए एक राजपूत बाप का बेटा थी अपने को स्वतन्त्र घोषित कर सुजफ्फरशाह के नाम से तख्त पर बेठा । इस राजवंश का सबसे अधिक योग्य राजा महमूद बेगरा १४४५८-१५११ ई० था। बाबर के आक्रमण के समय गुजरात का शासक मुजफ्फरशाह द्वितीय था जो १४११ ई० में महसूद बेगरा का उत्तराधिकारी बना था । अपने शासनकाल मे अपने अनेक बैरियों से उसे मोर्चा लेना पड़ा । मेवाइ के राणा सांगा के साथ भी उसका संघष हुआ भौर उसे पराजित होना पड़ा । अप्रेन १४१६ ई० में उसकी मृत्यु हो गयी भर उसके बाद कुछ समय तक अशान्ति छायी रही जिससे गुजरात की शक्ति बहुत कुछ क्षीण हो गयी । जुलाई १५२६ ई० में उसका लड़का बहादुरशाह राजा धना और भागे चलकर यह एक महृत्त्वाकांक्षी सुयोग्य ओर सफल शासक सिद्ध हुआ । हि भेवाड़ चिल्तोंद मेवाड़ जिसकी राजधानी चित्तौड़ थी राजस्थान में विस्तृत और परम शक्तिशाली राज्य था । इस राजघराने के लोग अपने को गुहिलवंशी मानते थे और छठवीं शताब्दी से ही उन्होंने चितौड और इसके समीपवर्ती क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य रधापित करना शुरू कर दिया था । इस राजवश मे बहुत-से श्रेष्ठ और सुयोग्य शासक हुए जिनमें राणा कुम्भक्ण कुम्भा १४३३-१४६८ ई० का नाम थिशेष उत्लेखनीय है । अपने राज्य की सुरक्षा के निमित्त उसने अनेक किलों का सिर्माण कराया और अपनी राजधानी में बहुत-सी शानदार इमारतें बनवाकर इसकी शोधा भी बढ़ायी । उसने मालवा के सुल्तान को पराजित किया और सारे मध्य भारत में अपना प्रमृत्व जमा लिया। बाबर के आक्रमण के समय चित्तोड़ के सिंहासन पर राणा संधामसिंह जो राणा सांगा के नाम से विख्यात है विराजमान था । बहू एक रण-कुशल और वीर योद्धा था । सौ युद्धों में भाग लेने के फलवस्रूप




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