लौटता हुआ दिन | Lautata Hua Din
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.51 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ | लौटता हुआ दिन
कोई कोशिश नहीं करना चाहते ।
माथुर साहब ने 'क़रैद' की प्रशंसा करते हुए कहा कि लाड साहब
का हरगिज़ ऐसा मतलब नहीं हो सकता । लाड साहब ने भी इस बात
का समर्थन किया ।
बहुरहाल, वही नाटक, जिसे स्वतस्त्रता-प्राप्ति के बाद भी दिल्ली के
स्टेशन डायरेक्टर ने एक बार अस्वीकार कर दिया था, १८४५८ की
जनवरी में नेशनल प्रोग्राम में स्वीकृत हुआ और सभी भाषाओं में
ब्राडकास्ट किया गया । नये नियम के अनुसार आधे घण्टे के नाटक के
बारह-साढ़े बारह रुपये दूसरी रॉयल्टी के मिलने चाहिए थे, लेकिन मुझे
इस नाटक की सब्सीकुएण्ट रॉयल्टी के चालीस रुपये हर स्टेशन से मिले ।
माथुर साहब ने जब नाटक को नेशनल प्रोग्राम के लिए चुना था (और
जैसा कि मैंने कहा, यह आधुनिक हिन्दी का पहला नाटक था, जो उस
प्रोग्राम में चुना गया) तो उन्होंने कहा था कि मेरे नाटकों में उन्हें यह
सर्वाधिक प्रिय है । लेकिन यह नाटक यद्यपि रेडियो पर, स्वतस्त्रता-
प्राप्ति से पहले और बाद, अस्वीक़ृत हो कर भी स्वीकृत हुआ और सभी
स्टेशनों से प्रसरित हुआ, मंच पर नहीं खेला गया । मेरे नाटकों में “छठा
बेटा,” “अंजो दीदी' और “अलग-अलग रास्ते” मंच पर बहुत सफल हुए
हैं और बार-बार खेले गये हैं । “अंजो दीदी” अतुदित हो कर गुजराती
में न सिर्फ़ छपा, बल्कि मंचित भी हुआ । “अलग-अलग रास्ते” मराठी
में छपा नहीं, पर महाराष्ट में खेला गया । “जय पराजय” और “उड़ान
भी खेले गये, लेकिन किसी ऐमेचर संस्था ने १८६१ तक “क़ैद' खेलने
की हिम्मत नहीं दिखायी ।
फिर सहसा १८६२ में “प्रयाग रंगमंच' ने इसे खेलने का फ़ेसला
किया । मंच के सुयोग्य डायरेक्टर स्व ० श्री सत्यब्रत सिन्हा ने कहा कि
नाटक की भाषा कहीं-कहीं व्लिष्ट है, उसे रवाँ कर दें और अन्त जरा
बदल दें तो हम इसे कर डाल ।
मैंचे नाटक की भाषा यथाशक्य बदल दी । अन्त के बारे में उनसे
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