दुनिया का चक्कर दस दिन में | Duniya Ka Chakkar Das Din Me

Duniya Ka Chakkar Das Din Me by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुनिया का चक्कर १२० सील से ऊपर नहीं जा रहा है । फिर उडान भी उतनी सधी और सीधी नहीं हैं । वायुयान चरावर हिल-डोल रहा है । जैसे इसका सन्तुलन नष्ट हो गया हो | कया बात हो गई !' टेव का दिल जोर-जोर से स्पदन करने लगा । उसने जमशेद को हटाकर स्वय चायुयान को चलाना शुरू किया । किन्तु उसे मी वही हुआ | जान और साम ने पारी-पारी से सचालन आपने हाथों मे लिया । उन्हें भी मशीन मे कुछ खराबी समभ पढी | चारों चिन्ता से व्याकूल हो उठे | शन्त में उन्हे विश्वास हो गया कि पीटर ने कुछ डुष्ठता की है । सहसा जमशेद ने कहा--'वे दोनो हमारे यान के पस्खों पर चढे थ्रे| शायद पीटर ने एक ओर के हेलियम के श्रैलो में से कुछ गस निकाल दी हो । वायुयान का सतुलन गड़वड दो गया है, एक श्र का हिस्सा कुछ तर दूसरी श्रोर का कुछ श्रधिक मारी जान पडता है । सतुलन ठीक न होने से मशीन की गति में और सधकर चलने मे बाधा पढ़ती हैं ।* गौर करने पर सभी को जमशेद की बात ठीक जान पड़ी । जमशेद को पीटर पर बहुत क्रोध ्ाया । छल द्वारा ठौड मे जीतने का प्रयत्न देख, पीटर पर सभी खीभ उठे । वैसे दौर सच ठीक था । इजन दुरुस्त थे । दूसरे सभी कलपुरजे पदले की तरह ही झ्रच्छी हालत में थे । जमशेट मन मसोस कर “गरड़ को चलाने लगा । जैंसे भी हो, पारा पहुँचने के पहले कुछ नी उपाय नहीं क्या जा सकता था । जान और साम रात भर वायुयान चला




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