खुले रहस्य | Khule Rahasya

Khule Rahasya by एम. के. धर - M. K. Dhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 खुले रहस्य के लिए सरकारें गिराने की साजिशं के लिए और हर व्यक्ति या व्यक्ति-समूहों पर जासूसी करने के लिए इन संगठनों का दुरुपयोग करना | इनमें प्रशासन अदालतें विधिक परिषदों के सदस्य विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर और मीडियाकर्मी शामिल हैं । मोबाइल टेलीफोन फैक्स और इंटरनेट सभी तरह के आम संचार को सुनते रहना नागरिकों की स्वाधीनता के विरुद्ध है। जिन अधिकारियों या संस्थाओं को ये काम सौंपे जाते हैं उनके बडे अधिकारी इस की निगरानी नहीं करते। ऐसे बहुत से कार्य आतंकवादियों का पता लगाने के नाम पर किये जाते हैं। फिर बहुत से मामलों में आई.बी..रॉ या सी.बी.आई. के अनैतिक अफसर बेगुनाह नागरिकों को ब्लैकमेल करते हैं। इस से भी ज्यादा भयानक है तहकीकात का गलत इस्तेमाल | जिस की जाच-पडताल हो रही हो आई.बी.. रॉ. या सी.बी.आई. के अफसर पैसे के लिए उसे अक्सर निचोड़ते हैं । केंद्र और राज्य स्तर के कई आई.बी. अफसर तो संदिग्ध छवि वाले लोगों के साथ मिल कर निजी काम-धंधा भी करते हैं। दिल्‍ली में इन में से एक गैरकानूनी तरीके से लोगों को बाहर भेजने के काम में लिप्त था । आला अफसरों तक शिकायत बहुत कम प्रहेंचती है क्योकि हमारे देश में आम धारणा है कि घूस का पैसा नीचे से ऊपर तक बंटता है। यह आरोप ज्यादातर पुलिस पर लगाया जाता है। केंद्रीय इंटेलिजेंस और रिसर्च ऐजेंसियों में भी ऐसा होता है इस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। देश की सुरक्षा और एकता को खतरे से बचाने के लिए और कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कुछ सुरक्षात्मक कार्रवाइयां करनी पड़ती हैं । पर बहुत से मामलों में बेगुनाह और शक से परे लोग सताए जाते हैं। इस गदे काम में अकेले आई बी ही लिप्त नहीं | इस तरह की हरकतों में रॉ. सी.बी.आई. डी.आर.आई राजस्व इटेलिजेस राज्य पुलिस बल तथा कुछ अन्य एजेंसियां भी लगी रहती हैं। उदाहरण अनगिनत हैं और इन की कार्रवाइयों का दायरा उतनी ही तैज़ी से बढता जा रहा है जितनी तेजी से यह दुनिया | यह खेल सिर्फ भारत में ही नहीं खेला जाता । यह सारी दुनिया में होता है । लेकिन सच्चे स्वाधीन लोकतांत्रिक देशों में इन पर लगाम लगाने और संतुलन की व्यवस्था है । वहां गलती करने वाले किसी निक्सन बुश या ब्लेयर को अपने देश की सर्वोच्च संस्था के सामने अपनी करतूत की सफाई पेश करने के लिए बुलाने की व्यवस्था है। युद्ध और शांति की कार्रवाइयों तक की पड़ताल ये संस्थाएं करती हैं । भारत में न तो राजनीतिज्ञ और न ही सामान्य प्रशासन या गुप्तचर संस्थाओं के अफसरशाह किसी के प्रति जवाबदेह हैं । यहां अगर कोई भाडे का टट्ू पुरूलिया में हथियार गिराता है या देश के साथ करगिल जैसा कांड हो जाता है तो भी गुप्तचर संगठनों को कुछ नहीं होता । उल्टे ऐसी संस्थाओं के मुखिया राज्यपाल तक बना दिए जाते हैं। वर्जह यह कि सारा मामला गृहमंत्री या प्रधानमंत्री तक आ कर खत्म हो जाता है । ः कार्यप्रणाली के नियम-कायदे से बच कर प्रधानमंत्री गृहमंत्री या उन के कुछ सलाहकारों को खुश कर देना कोई बड़ी बात नहीं । आई.बी. जैसा संगठन देश के किसी भी निर्वाचित संस्थान के प्रति उत्तरदायी नहीं है। अगर वे दो मुख्य उपभोक्ताओं प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को खुश रख सकें और कुछ खास अफसरों की मुट्ठी गरम कर सकें तो उन की चांदी ही




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