राजस्थान के लोकतीर्थ | Rajsthan Ke Loktirth

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Book Image : राजस्थान के लोकतीर्थ - Rajsthan Ke Loktirth

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भाई वेदव्यास जी - Bhai Vedvyas Ji

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महेंद्र जैन - Mahendra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं । ऐसी जनश्रुति है कि सारे भारत में केवल यही एक ज्रह्माजी का मंदिर है। ज्येष्ठ पुष्कर पर स्नानादि कर बहुत से यात्री मध्यम व कनिष्ठ पुष्कर दोनों पर भ्रथवा केवल कनिष्ठ पुष्कर पर स्नान त्पंणादि के लिए जाते हैं । ज्येष्ठ पुष्कर से मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर क्रमशः ५ व ८ किलोमीटर पर स्थित हैं । तीनों पुप्करों की परिक्रमा पांच कोसी परिक्रमा कहलाती है । पुष्कर के चारों श्रोर स्थित सभी पुष्य स्थलों की. परिक्रमा चौबीस कोसी परिक्रमा कहलाती है जो सात दिन में पूरी होती है। इसे पँंचभीष्म स्नान भी कहते हैं । ज्येष्ठ पुष्कर से एक किलोमीटर की दूरी पर भतृं हरि की गुफा है । ऐसी जनश्रुति है कि राजा भतृंहरि ने यहां योग लेने के बाद तपस्या की थी । यह भी दर्शनीय स्थल है । ज्येष्ठ पुष्कर से ६ किलोमीटर की दूरी पर गया कुन्ड है जहां यदि किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष की चतु्देशी को मंगलवार हो तो गया तीथ,.का झ्नाविर्भाव. माना जाता है। इस अवसर पर. आ्रास-पास के स्थानों से हजारों यात्री यहां आते हैं । पुष्कर में लगभग ४०० मन्दिर हैं जिसमें ब्रह्माजी का मन्दिर मुख्य कहते हैं । इसे श्रौरंगजेव के राज्यकाल में तोड़दिया गया था । सन्‌ १७१९ ईस्वी में जयपुर की एक ब्राह्मण स्त्री ने इसका जीर्णोद्धार करवाया । वाद में दौलतराव सिच्धिया के एक मन्त्र गोकूलचन्द्र पारीक ने इसे वनवाया । ब्रह्माजी के मन्दिर के पास के पहाड़ों की चोटियों पर साचित्री व श्रापमोचिनी (गायत्री ) के मन्दिर हैं । नये बने मन्दिरों में रंगजी का मन्दिर दर्शनीय है । यहां विष्णु, लक्ष्मी व नूसिहजी की मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं । मेले के दिनों में पुष्कर एक वहुत ही कार्यरत व शोर-शराबे से पु्णं स्थान हो जाता है । श्रजमेर तथा झ्रास-पास के अन्य इलाकों से सैकड़ों दुकानदार तरह तरह का सामान मेले में बेचने के लिए लाते हैं । इन दुकानदारों में अ्रघिकतर हलवाई तथा छोटी- मोटी चीजें बेचने वाले होते है । एक अस्थायी बाजार लग जाता है । काथि्यां, रकाबव, भूले, गोरवन्द, मालायें, घंटियां, हाथीदांत का सामान, छपे हुए कपड़े, पीतल के बर्तन श्रादि नागौर, मेड़ता, श्रजमेर, जोधपुर व जयपुर झ्रादि से विकने के लिए झाते हैं । मनिहारी व अन्य छोटे-मोटे सामानों की दुकानें सड़क के दोनों झ्रोर लग जाती हैं । मेले में भ्राने वालों के मन वहुलाने के लिए तरह-तरह के मनोर॑जनों के साधन जसे सिनेमा, चुमाइश सांस्कृतिक प्रोग्राम तथा विभिन्न खेलों की प्रतियोगिताओं श्रादि का श्रायोजन किया जाता है । बहुत से भोपा, भगत, भाट आदि पुराने वीरों की वीर-गाथायें आदि गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं । साधू, सन्यासी, दवा बेचने वाले आदि भी बहुत बड़ी संख्या में इकट्ठे होते हैं। -.. न _ राजस्थान के लोकतीर्थ 1१४,




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