रत्नाकर शतक भाग - १ | Ratnakar Shatak -1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) है । ससार के मनीज्ञ पदार्थों के अतरग श्रौर बहिरग रूप का सान्नात्कार कराते हुए उनकी वीभस्सता दिखलायी है । श्रात्मा के लिए श्रपने स्वरुप से मिनन घरीर, स्त्री, पुत्र, घन, घास्पू, पुरजन, परिजन हेंय हैं। ये मोह के कारण मसार के पदार्थ बाहर से ही सुन्दर दिसलायी पड़ते हैं, मोह के दूर होने पर इनका वास्तविक रूप सामने ब्राता हैं. जिससे इनकी घृशित अवस्था सामने झ्राती है । श्रन्नानी मोदी जीव भ्रमवण ही मोह के कारण श्रपने साथ वरघे हुए घन, ट्वप, कोघ श्रादि विभावो के सयोग के कारण श्रपने को रागी, द्वेषी क्रोघी, मानी, मायावी, श्रौर लोभी समसता है, पर चास्तव में वात ऐसी नहीं है। ये सब जीव की विभाव पर्याय हैं, पर निमित्त से उत्पन्त हुई हैं, श्रत. इनके साथ जीव का कोई सम्बन्ध नही है । श्रात्मिक भेदविज्ञान जिसके श्रनुभव द्वारा शरीर श्ौर श्रात्सा की भिनतता अ्रनुभ्ुत की जा सकती है, कल्याण का कारशा है । इस भेदविज्ञान की दृष्टि प्राप्त हो जाने पर शात्मा का साक्षातुकार इस शरीर मे ही हो जाता है तथा भौतिक पदार्थों से ्रास्था हट जाती है । श्रतएव रत्नाकर शतक का श्रध्यात्म निराशा- चाद का पौधक नही, वल्कि कृत्रिम ्राशा श्रौर निराझाश्ो को दूर कर झ्ट्भुत ज्योति प्रदान करने वाला है । रत्नाकराधीश्वर शतक की रचना शैली और भाषा यह शतक मत्तेमविक्रीडित श्रौर शादू लविक्रीड़ित पद्यो मे रचा गया है । इसकी रचना-देली प्रसाद श्रौर माघुयंगुण से भ्रोत-प्रोत




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