पिता की सीख | Pita Ki Siikh

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Pita Ki Siikh  by हनुमानप्रसाद गोयल - Hanumanprasad Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारी स्वास्थ्य-रक्षक सेना ९ जज़िजिजि कि जि विज़ी जी जि और जि कि पि वि फि जि जा जो जि जि जी कि जि हि ज़ी जी जि जी ज़ी जी जी ज़ी जी जा जी की पीजी जी हि जी जी कि पी डी जी फीज़ी जी जी जी जी ही ज़ी ज़ी जि भी ज़ी ब सिपाही झट उसपर टूट पड़ते हैं और उसे मार-मारकर बाहर निकालनेकी चेष्टामें लग जाते हैं : केशव--औओहो ! ये सिपाही कौन हैं ? पिता--ये हमारे खूनके सफेद कण हैं। हमारे खूनमें दो प्रकारक अत्यन्त नन्हें-नन्हें जीवाणु पाये जाते हैं--एक लाल और दूसरे सफेद । इनकी शकल पहियोंकी तरह घेरेदार हुआ करती है । ये हमारे खुनके जीवित कण हैं और खुनके साथ-साथ सारे झारीरमें चक्कर लगाया करते हैं । इनमेंसे लाल कणोंका काम झारीरके तमाम अड्लोंको भोजन ढो-ढोकर पहुँचाना है ओर सफेद क्णोंका काम झारीरकी रक्षा करना हैं । वहुत छोटे होनेके कारण आँखोंसे ये नहीं दिखायी देते, किंतु अणुवी क्षणयन्त्रकी सहायतासे हम इन्हें जब चाहें देख सकते हैं । जिस समय किसी रोगके कीटाणु हमारे खूनमें पहुँचते हैं तो ये सफेद कण हमारी रक्षाके लिये उनसे बड़ी तत्परताके साथ जा भिड़ते हैं और फिर कुछ समयतक उन दोनोंमें एक खासी कुझती होती रहती है । यदि हमारे सफेद कण रोगके कीटाणुओंसे झाक्ति और संख्यामें बलवान्‌ हुए तो वे इन्हें तुरंत नष्ट कर डालते हैं या कम-से- कम इनकी बाढ़को ही रोक रखते हैं, जिससे हमारे शरीरको किसी तरहकी हानि नहीं पहुँचने पाती । वास्तवमें यह भी नहीं मालूम होता कि हमारे शरीरमें किसी रोगके कीटाणुओंने प्रवेश भी किया था या नहीं किंतु यदि हमारे सफेद कण इनसे कमजोर पड़े तो फिर वे स्वयं नष्ट होने लगते हैं और रोगके कीटाणु तेजीके साथ बढ़कर सारे शरीरपर अपना अधिकार जमा लेते हैं, जिससे हम बीमार पड़ जाते हैं । केशव--ये बातें सुननेमें बड़ी अद्भुत जान पड़ती हैं । पिता--हाँ, लेकिन हैं ये बिलकुल सच ! हम बहुधा देखते हैं नस,




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