पद्मिनी चरित्र चौपाई | Padhini Charitra Chopai

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Padhini Charitra Chopai  by भँवरलाल नाहटा - Bhanvarlal Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(4 ) शोस के यहाँ पहुंची । उसने बादल को भी तंयार किया । पॉच सौ डोलियाँ तेयार हुई और एक एक डोली में पॉच-पाँच आदमी बंठे । बादल ने रवयं पदूमिनी का रूप धारण किया; और राजा को बचा ले गया । शोरा युद्ध में काम आया | सबत्‌ १६४५ में जन कवि देमरतन ने महाराणा प्रताप के राज्यकाछ में इस वीर गाथा की अपने शब्दों में पुनरावृत्ति की । '“स्वामिधम' का प्रचार सम्भवतः इस नव्य रचना का मुख्य लक्ष्य था इसी कथा का परिवर्धन संवत्‌ १७६० में भाग- विजय नाम के अन्य जेन कवि ने किया * । जटमढ नाहर रचित 'गोरा बादल चोपई भी इस प्रंथ में प्रकाशित हो रही है । इसका रचनाकाल बि० सं० १६८० है । कथा में कुछ द्रव्य बातें ये है :-- (क.) चित्तोड़ का राजा रतनसेन चौहान हे । (ख) एक भाट से पदुमिनी के विषय में सुनकर वह सिंह जाने का निश्चय करता है | (ग) सिंहठराज ने बिना किसी आपत्ति के रतनसेन और पदूमावती का विवाह कर दिया और राघवबचेतन को उसके साथ चित्तोड़ भेजा । १--देखें इस संभ्र के प्र०१८९-१२८ २--ूदेखें शोधपत्रिका साग ३» अड २ पृष्ठ १०५-११४ पर श्री भगरचन्द नाइटा का लेख । ३-० १८४९-३०८




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