मौलाना गाँधी | Moulana-gandhi

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Moulana-gandhi by रविशंकर शुक्ल - Ravishankar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मोलाना गांधी ं १३ मुंशी; टंडनजी, संपूर्णानंद जी; पं० बालकृष्ण शर्मा, झाचायें नरेंद्रदेव झादि-झादि भी राष्ट्रीय नेता हैं; जिन्होंने कांग्रेस झौर देश की सेवा में अपने बाल सुखोए हैं । उन्हें भी बोलने का झधिकार है । क्या वे हिंदुस्तानी-प्रचार-सभा के सिद्धांतों से सहमत हैं ? फिर, भाषा का प्रश्न राजनीतिक प्रश्न नहीं; राष्ट्रीय नेताओं” की कृपा से बना भले ही दिया गया हो । ईिंदी को राजनीति के दाँव-पेंच का शिकार नहीं बनने दिया जा सकता । राष्ट्-भाषा के प्रश्न पर भाषा-विशेषज्ञों को भी बोलने का पूरा-पूरा अधिकार है । जो “राष्ट्रीय नेता' हिंदुस्तानी का ढोल पीटते हैँ, उनमें से कितने भाषा-विशेषज्ञ हैं, अथवा साहित्यिक ही हैं ? श्रौर; जो “राष्ट्रीय नेता' गाल बजाते फिरते हैं. कि 'दहिंदुस्तानी' ऐसी होनी चाहिए; वेखी होनी चाहिए, ऐसी 'हिंदुस्तानी' बोली जाती है; वेसी 'हिंदुस्तानी' बोली जाती है; उनमें से कितनों की सात॒भाषा 'हिंदुस्तानी' है; अथवा कितनों को 'हिंदुस्तानी”-प्रदेश में “जन्म लेने और रहने का सौभाग्य या दुभौग्य प्राप्त हुआ है? क्या 'राष्टीय नेताओं” ने झपने 'एक भाषा; दो लिपि'वाले सिद्धांत को भाषा-विशेषज्ञों से जेंचवाने का कष्ट किया है कि यह संभव भी है या नददीं ? ( डॉ० सुनीतिकुमार चटर्जी को. ही सुन हों । ) विज्ञान का मामला होता है; तो राष्टीय नेता वैज्ञानिकों से पूछते हैँ, छथ-शास्त्र की कोई समस्या दोतों है; तो छथं-शास्त्रियों की कमेटी बेठाते हैं; फिर राष्ट्र-भाषा




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