हिन्दी वालो सावधान | Hindi Balo Sawadhan

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Hindi Balo Sawadhan by रविशंकर शुक्ल - Ravishankar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६६ हिन्दी की अपनी समस्या उल्टे हिन्दुस्तानी के नाते उदं श्रौर उद लिगि का युक्त-पान्त पर उतना हो अधिकार हो गया जितना हिन्दी श्रौर देवनागरी का, श्रीर्‌ यह कहने की गुजाइश श्र यह बतलाने का साधन भी न रहा कि युक्त-प्रान्त में इतनों की मात-मापा हिन्दी है श्रौर केनल इतने च्रपनी मातु-भापा उदू वताते हैं । सब प्रकार से हिन्दी की घोर हानि हृईः श्रौर इसी कारण मुसलमान तदेदिल से युक्त-प्रान्त की भाषा को “हिन्दी' के बजाय “हिन्दुस्तानी कहे जाने के साथ हैं | हिन्दी की रक्ना के निमित्त इन बातों की आवश्यकता हैः-- श्र) स्पष्ट घोषणा की जाय श्रौर प्रचार किया जाय कि १. युक्त-प्रान्त की प्रादेशिक या देशज भाषा श्रर्थात्‌ मात-मापा दिन्दी है, “हिन्दुस्तानी” नहीं, क्योकि यदय की विभिन्न जनपदीय बोलियां हिन्दी माप्रा की बोलियाँ हैं । हिन्दुस्तानी या खड़ी बोली स्वयं हिन्दी की एक बोली है जो युक्त-प्रान्त के एक डेढ जिले मे बोलती जाती है, इसलिये युक्त-प्रन्त की मापा का नाम हिन्दुस्तानी कदापि नही हो सकता । 'लेंगुएज सरवे श्राफ इन्डिथाः मे युक्त-प्रन्त की भाषा को “हिन्दी' ही बताया गया है और यही नाम अब तक बराबर जन-गणना की रिपोर्ट मे प्रयुक्त टोता श्राया है ; २. युक्क- प्रान्त बिशुद्ध हिन्दी प्रान्त है, श्रौर यहाँ की जनता की मात-मापा श्रौर बोल- चाल की मापा हिन्दी है, हिन्दुस्तान” नहीं, इसलिये यहाँ हिन्दी का ही एकाधिकार दो सकता है । उदू किसी प्रदेश कौ जन-मापरा या मातु-मापा नहीं । बह एक सादित्यिक मापा है, श्रौर युक्तप्रान्त में उदूं पढ़ने पढ़ाने श्रोर उसमें काम करने की छूठ उसी दृद तक श्रोर उसी प्रकार दी जा सकती है. जिस प्रकार किसी अन्य साहित्यिक भाषा जेप झंगरेज़ी, बगला, इत्यादि में; ३. साहित्यिक इष्टि से भी झाघुनिक, साहित्यिक खड़ी बोली हिन्दी ही युक्त प्रान्त की साहित्यिक भाषा हो रकती है; क्योंकि यहाँ की विभिन्न बोलियों के साहिस्यि की शोर लोक-साहित्य की आधुनिक हिन्दी साहित्य से एका-कारतो आर एकरूपता है, उदू साहित्य या किसी “हिन्दुस्तानी” साहित्य से नहीं |




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