राष्ट्र भाषा की समस्याएँ और हिन्दुस्तानी आन्दोलन | Rashtra Bhasha Ki Samasya Aur Hindustani Andolan

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Rashtra Bhasha Ki Samasya Aur Hindustani Andolan by रविशंकर शुक्ल - Ravishankar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ददी १९१ आप्त है | अगर आधुनिक युग मे आऊर हिंदी-सापी प्रातो के मुसलमानों ने अपनी स्वाभाविक साहित्यिक भाषा हिंदी से नाता त्तोड लिया है, तो इसमे हिंदुओ, हिंदी या हिंदी लिपि का दोष नहीं। इसके कारण वे ही है, जिनसे प्रेरित होकर आज मुसलमान पाकिस्तान की माँग कर रहे डे, चेंगला को 'ुसलिम वेंगला” बना रहे है। सिंधी मे अरबी के शब्द दस रहे है, और बबई-आंत के मरादी और गुजराती बोलनेवाले मुसलमानों के लिये (अभी हाल की बबई-प्रांतीय उ्दे- कॉन्फ्रेस मे, जिसका सभापतित्य डॉ? अब्दुल हक ने; जिनसे, गांधीजी “हिंदुस्तानी” के विषय में अब अपने आपको सहमत बतलाते है, किया) एक उद्द-विश्वविद्यालय की मॉंग कर रहे दूँ । 'हिंदी-उदृ-समस्या” का कोई वास्तविकं अस्तित्व नदीं है । यह्‌ तो फेयल राजनीतिक हिंदू-मुसलिम समस्‍या की भाषा के क्षेत्र में छाया है, और राजनीति के ज्षेत्र मे साम- दायिक समस्या मुल्मने पर अपने आप दल हो जायगी 1 ऊपर के विवेचन से यहभली भाँति स्पष्ट है हि आधुनिक हिंदी अपनी मर्यादा के दर ड, अपनी परंपरा पर आम्ूढ है, और অহ उत्तरी भारत की स्ताभाजिक साहित्यिक भाषा है, इसलिये उसे अपने वर्तेमान रूप में रहने का पूर्ण अधिकार है| अगर गांधीजी या हिंदुस्तानी-प्रचार-सभा की ओर से दिंदी को दवाने;का या उसे किसी प्रकार की हानि पहुँचाने का या उसे विद्ञत करने का या उसकी उन्नति चौर अ्रचारमेस्खा-




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