धर्म प्रज्ञप्ति - खंड 1 | Dhram Pragyapti Khand 1
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi
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मुनि नथमल - Muni Nathmal
मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका
प्रस्तुत ग्रन्थ ददावेकालिक का वर्गीकृत रूप है । ददवैकालिक
का मूल सूत्रों में पहला स्थान है। इसके दस अध्ययन हैं ।
यह विकाल में रचा गया, इसलिए इसका नाम दशवैकालिक रखा
गया 1. इसके कर्त्ता श्रुतकेवली आचायं शसय्यंमव है । अपने पुत्र-
शिष्य मनक के लिए उन्दोने इसकी रचना की । वीर सबत् ७९ के
आस-पास “चम्पा' में इसकी रचना हुई । इसकी दो चूछिकाएँ है ।
दशवेकालिक अति प्रचढित भर व्यवहत आागम-प्न्य है ।
अनेक व्याख्याकारों ने अपने समर्थन के लिए इसके संदर्भ-स्थलो को
उद्धृत किया है ।
यद्द एक निर्यूहण कृति है, स्वतंत्र नही । आचायं शय्यभव
श्रुतकेवली थे । उन्होने विभिन्न पूर्वों' से इसका निर्यहण किया, यह
एक मान्यता है। दूसरी मान्यता के अनुसार इसका नियूंहण
गणिपिटक द्वादधयाद्धी से किया गया ।
यद्द सूत्र दंवेताम्वर और दिंगम्बर दोनो परम्प्राओ में मान्य रहा
है। धवेताम्बर इसका समावेश उत्कालिक सूत्र में करते हुए इसे
'चरण-करणानुयोग के विभाग में स्थापित करते हैं। इसके
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