प्रार्थना - प्रबोध | Prarthana-prabodh  

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राथना की महिमा रद नाश करने के लिए नम्रतापुदक प्रार्थना करते हैं । इसी भाव से परमात्मा की प्रार्थना करना उचित है । भ्रगर तुम भाश्ञा को नाश करने के बदले सांसारिक पदार्थों - घन, पुत्र, स्त्री भ्रादि के लिए प्रार्थना करोगे तो. संसार के पदार्थ तुम्हें लात मार कर चलते बनेंगे भ्रौर तुम्हारी श्राशाएं ज्यों की त्यों श्रघूरी ही रह जाएगी । हां, श्र१र तुम ग्राशा- तृष्णा को नष्ट करने के लिए. अन्त:करण में पूर्ण निस्पृद् वृत्ति जागृत करने के लिए ईश-प्राथना करोगे तो संसार के पदाथे-- जिसके तुम श्रधिकारी हो- तुम्हे मिलंगे ही, साथ ही शाँति का परम सुख भी प्राप्त होगा । श्रतएव श्राश्या को नष्ट करने की एकमात्र आशा से परमात्मा की प्राथना करो । यह मत सोचो--ईदवर तो कभी दिखता नहीं है, उससे प्रेम किस प्रकार किया जाय ? अगर ईइवर नहीं दिखता तो संसार के प्राणी, कीड़ी से लगाकर कु जर तक, समान है। इस तत्त्व पर विचार करोगे तो ईश्वर से प्रेम करने की बात प्रसम्भव न लगेगी । ईइवर नहीं दिखता तो न सही, संसार के प्राणियों की श्रोर देखो श्रौर उन्हें भ्रात्म-तुल्य समभो । सोचो --जेसा मैं हूँ, वैसे ही यह हैं । इस प्रकार इतर प्राणियों को श्रपने समान समभने से शरने:-शने ईदवर का साक्षात्कार होगा--परमात्मतत्व की उपलब्धि होगी - श्रात्मा स्वयं उस शुद्ध स्थिति पर पहुँच जायगा । तात्पयं यह है कि ईइवर का ध्यान करने से झात्मा




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