उधरण माला | Udharan Mala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Udharan Mala  by पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

Add Infomation About. Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उदाहर्णमाला | [३ भिन्नो । अधिकांश मे खियो को पतित वनाने वाली यदी वस्तुँ हैं । खियँ यदि पौद्गलिक श्ज्ञार की लालसा पर विजय प्राप्न कर सकं, गहना, कपडा श्रौर खान-पान की वस्तु पर न लक्तचावे, इससे समत्व हटा ले, तो किस की शक्ति दै जो परखी की ओर बुरी तजर से टेख कके ? मनरेवाने कदा है कि जिखका पतिषैरदेशमे हो उसे विलासनसामम्री से क्या प्रयोजन है ? मदनरेखा ने मणिर्थ के भेजे हुए चस्त्राभूषण लाने बाली दूत्ती को फटकार वत्ताई और वापस ले जाने को कद्दा । दूती ने धृूपता के साथ कहा--राजा आप को चाहते है। इन गहनं कपडों की तो वात ही क्या दै, वे स्वयं आपके श्राधीन होने वलि दै] यह्‌ वस्त्र श्रौर श्राभूषण तो शपनी हार्दिक कामना प्रकट करने के लिए दी उन्होंने भेजे हैं ।' दूती की निलज्जतापूणं वात सुनते ही मदनरेखा का ्रद्ध- अन्न क्रोध से जल उठा । उसने अपनी दासी से ्रपनी खङ्ग मेंगवाई और दूनी को उसकी धृष्टता का मजा चखा देने का विचार किया । ` मदनरेखा की भयंकर आति देख कर दूती सिर से पैर तक कोप उटी ! उसकी प्रचण्ड मुखमुद्रा 2ेख दूती के चरे पर हवा इयां डने लगीं 1! तव सदनरेखा ने उससे कहा--जा, काल! सह्‌ कर ¡ श्पने राजा से कह ठेना किं वह्‌ सिंहनी पर दाथ डालने की खतरनाक श्रौर निष्फल चेष्ठा न करे; न्यथा धन~परिवार समेत उसका समूल नाश हो जयगा ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now