सन्त - वाणी | Sant Vaani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
काका कालेलकर - Kaka Kalelkar
No Information available about काका कालेलकर - Kaka Kalelkar
वियोगी हरि - Viyogi Hari
No Information available about वियोगी हरि - Viyogi Hari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थै शक
शै थक
“घट-घट व्यापक राम
१. मेरा साई हर घट के श्न्दर मौजूद हैं;
एक भी सेज नहीं; जो मेरे प्यारे सजन से सूनी हो ।
पर बलिहारी तो उस घट को है--
जिसमें प्रकट हो वह प्यारा साई दीदार देता है ।
२. मेरा साई त्राग की नाई;
घट-घट में समाया हुआ है ।
पर लगन के चकमक से चित्त लगे तब न--
इसीसे तो मेरी यह लो बुम-बुभ जाती है |
३. राम मेरा रम तो हर घर में रहा है,
पर इस मेद को समभता कोई विरला ही है ।
राम की श्रलख व्यापकता को तो वही समभेगा;
जो उसके प्रेम के गहरे रंग में रँँगा होगा ।
४. इस तन के श्रन्दर ही तो वह शाही तस््त है,
जिसपर हमारा शाहों का शाह ्रासीन है ।
जहान में जितने भी जीव हैं,
वहीं से बेठे-बेठे वह सबका मुजरा लिया करता है |
५. ज्योतिरूप से यह श्रात्मतत््व हर घट में समाया हुआ्रा है;
मेरा यह परमप्यारा तत्त्व
एक त्तण भी इघर-उघर नहीं जाता ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...