विद्यापति की पदावली | Vidyapati Ki Padawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
385
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिचय
'पहाउश, केतज्टा
यादू नगेन्ड्नाव यु लिखते है विद्यापत्तिर जे. रुप जनुकरण
आल, चोव दय कोन देगे कोन कविर तद्ठूप दर नाह।.... ताहॉरइ
भाषा भौगिय-चूरिया, गडिया-गठिया, रुपनरख, छुन्दो बाघ, स्ावनभगी ,
दाव्द, उठ्मर का; उपसा तॉहारइ पदावली छइ़ते लड़या लोकमनो सोहन
सैप्णवकान्यसमूद सजित हल । ?
श्रीच्ेलोक्यनाध भट्टाचार्य, एस्० ए०, वो० एल ने जो लिया था
उसका भाव देखिये--'विद्यापति और चडीटास की अतुलनोय प्रतिभा
से समस्त नग-साहित्य उय्स्वल ओर सजाव हुआ हैं। वैप्याव गोविन्द-
दास और ज्ञानदास से लेकर हिन्दू नकिमचन्द्र और बाह्य रवोन्द्रनाथ
ठाकुर तक सच ही उनलोयों की आभा से आलोकित है; और उनलोगो
का अजुकरण करके कविता-रचना में व्यस्त पाये जाते हैं ।*”
फल यह हुआ कि विद्यापत्ति चगाकियों के रगरग से प्रवेश कर गये ।
सैकड़ों वर्षा तक लगातार वगालियों द्वारा गाये जाने के कारण इनके
डागदेगीय पर्दों का रूप भी ढेठ बंगला हो गया । अब तो बगाली लोग
यह सर्नधा भूल दो गये कि *विद्यापति चयसाली नहीं; सेथिल थे' ।
वंगाली साई अपनी कुशायर चुद्धि के लिये प्रसिद्ध हैं। उन लोगों
ने हनका निवास-स्थान भी बंगाल हा से हँँढ निकाला । यहीं नही;
पदिवसिंद” नासक एक बयाली राजा भी कही से ।टपक पढ़े--'रानी
लगिसा देवी? भी मिल गइ यो सब अ्रकार से सिद्ध हो गया कि!
दिद्यापति ठेठ वयाली थे 1
चेंगला १०८२० साल में ( स्वर्गीय ) राजकृप्ण मुखोपाध्याय ने पहले-
पहल 'चड्डदर्शन' नामक पत्र में यह प्रकाशित किया कि 'विद्यापत्ति
वगाली नहीं; मेधिल थे । इसके प्रमाण में उन्होंने उपयुंकत ताश्रपत्र
आदि पद किये । फिर तो सारे घगाल में कोलाहल मच गया । विद्यापत्ति
पर बंगाली लोग इतने फिदा थे कि उनका अन्यदेदीय सिद्ध होना थे
सुनना नहीं चाहते थे |
उस समय एक प्रसिद्ध चेंगला-लेग्वक ने यद अन्दाज लडाया था फि
चिद्यापति वगाली ही थे--पहले व गालों लोग मिधिज्ञा सें विद्याध्ययन को
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