गीता का समत्व - योग | Gita Ka Samtav Yog

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Gita Ka Samtav Yog by रामगोपाल मोहता - Ramgopal Mohta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ऐ खनम करना चाहते है, प्ौर नरम समाजवादी लोकतात्रिक प्रणासी से, ससदोष निर्वाचस, प्रचार, सगदन शोर बार्दोलन द्वारा पूँजीवाद सौर साशाज्यवा्द की वर्तमान शोषक प्रणालियों का श्न्त दाने दाने वरता चाहने हैं । दोनो का लय एक ही है, केंवल साधन, समय श्र सुविधा वा प्रन्तर है। दोनो ही इग वात में एकमत है कि उत्पादन, वितरण, सवार, परिवहन भौर पूंजी विनियीग के तमाम साधनों पर किसी व्यक्ति विदेष, श्रथवं वर्ग विशेष वा स्वामित्व मे होकर, उन पर राज्य का स्वामित्, अथवा राज्य द्वारा नियत उद्पादक श्ौर उपभोक्ता प्र को सामाजिक सस्थाधो का स्वामित्व होना चाहिए । जिस तरह विजिनदास/ नकोतदास ब्ौर जन्मजात दासपन की प्रयामो का अन्त हुमा, उसी तरह वेतन भोगी दासप्रथा से होते वाले शोषण वा भी अस्त होना चाहिए । श्राधूनिक समाज वाद को मानने और उसमें कुछ सफलता प्राप्त करनेवाते देशी में यद्यपि झये व्यवस्था की प्रणाली मै मौलिक श्रौर फ्रान्तिकारी परिवर्तन करके झपने सेसा जे के आाधिक क्ंत्र में मनुप्य हारा मनुध्य के, ब्ौर एक वें द्वारा दूसरे मरे के दोधण प्रौर देंकारी व बेरोजगारी का ग्रन्त बार दिया है, इसलिए वहाँ समाज को वर्ग विह्वीन बनाने के! दावा किया जाता है, परननु वहाँ राजनतिर दलों में, धन दादित दे रंदाव ये जन शर्त का सर उसके देर! सन पावित बा देस्ट्रीकरण हो जाने से, उनहे भी नये रूप में बर्म जद (0155 तुएपातटा ८05) 'उत्पान हो गये हैं, जिनसे सापस से लडाइयाँ घर खींचातानियाँ च़ती रहती है श्र जन शाघारण के साथ दमस 'प्रथवा उपेक्षा का बर्ताव भारी पाता में होता है। जब तक मनुष्यी में ग्रापस में सामाजिक, स्ाशिक थे राजुेलिक छ्यवहार करने का उद्देश्य, झपनी ब्पवितगत रवाथ सिद्धि (९00 फट) का रहेगा, तक तक लिस किसी व्यवित या संस के हाग में, जिस फकिसी प्रकार की शत का ससय होगा, उसका कक रोग वश की गरद कक बी की रदो।पत्वनहीन उपेक्षा का श्रक्त चलेगा 1 गज विज्ञान मे समाज को एक सर्माव् सज्नीव उुश्ष के स्व भे भोना गया है। प्रहडति के सात्विक, राजस और तामस नीम र्वा- भाविक गुणों की कर्मी-वेशी के भाघार पर शरीर की योग की आवय्यताएँ पूरी करने के लिए शिक्षा, रक्षा, वाणिज्य झौर सेबरा का काें - विभाग किया गा है। मात्तव देह के मस्तिष्क में सत्ब गुण की प्रधानता होने के कारण, चहह ज्ञाद आर विचार दाक्ति का किन्दर है; उसी तरह सत्त्व गण प्रधान सतुष्यों में ज्ञान झौर विचार दाक्ति का विशेष विकास ग व होने के कारण, उनमें शिक्षा देने की विशेष थोग्वतों होती है; अत उनको बाण वर्ण की संज्ञा देकर, समाज यता के 'प्रनुसार, समाज




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