नैतिक संजीवन - भाग 1 | Netiak Sanjeevan Part- I

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Netiak Sanjeevan Part- I by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कतंब्प-पुति के लिए नया मोड श्रावश्यक चरित्र का सम्बन्च केवल व्यापार-थुद्धि तक ही सीमित्त नही है। उसका सम्बस्व उन सब कार्यों से है, जो मनुष्य को हिसक बनाते है । खाद्य पदार्थों मे मिलावट करने वालों को यदि चरिन्रवान्‌ नहीं कहा जा सकता, तो श्राराविक श्रस्यों का निर्माण करने वालो को भी चरियवान्‌ नहीं कहां जा सकता । शोपणा, श्रन्याय, झसहिष्णुता, झाकमण, दूसरों के प्रभुत्व का श्रपहरण या उसमें हस्तक्षेप और श्रमामाजिक प्रवृत्तिया, ये सब चरित्र के दोप है । लगभग सभ। लोग इनसे भ्राक्कान्त है । भेद है, मामा श्रौर प्रकार का । कोई एक प्रकार के दोप से भ्राक्नान्त है तो कोई टूसरे प्रकार के दोप से, कोई कम माया मे है तो कोई अधिक मात्रा में । अ्रभी मेरे सामने भारतीय नागरिक है । उनमें अ्पहि- प्णुता, आक्रमण, दूसरों के प्रभुरव का गप्रपहररण या उसमे हस्तक्षेप , उन दोपा की मात्रा विशेष नही है । क्न्‍्तु बोपग्ग और श्रसामाजिक प्रवत्तिया की साया उनमे अधिक है । व्यावहारिक सचाई जितनी वई दूरवर्ती राष्ट्र के नागा पे हैं, उतनी भारतीय नागरिकों में नहीं है । यद्यपि आसपास की आजोचना मे कुछ कप्ट होता है, पर उसे मिटाने के लिए सही निदान के अ्रतिषििन श्र उपाय भी तो नहीं है । भ्रग्पुब्रत-प्रान्दोलन की अधिक यक्ति जीवन-त्यवहार पके झसदाचार को मिटाने मे लगी है । श्रान्दोलन ने छोटी छोटी वुराइया थी आर जनता का ध्यान खीचा है । कुछ बुराइया को लोग बुराई मानना भूल गये थे, उन्हें फिर से भान हुम्ना है श्रौर वे बुराई को वुराई समभन लगे है , यह झान्दोलन की सफलता है । वुराइयो को छोडने में जितनी श्रपेक्षा थी, उतने लोग सम्मिलित नदी हुए है, यह श्रान्दोलन वी असफलता है। श्रस- फलता का एक हेतु आधिक दुव्यंवस्या हो सकती है, पर इसके अतिरिक्त कुछ श्रौर भी है । चारित्रिक आन्दोलन इसलिए पूर्ण सफल नहीं होते कि जो श्रौर है, उसे महत्व नहीं दिया जाता, सारा महत्त्व झथें व्यवस्था को दिया जाता है । इसमें कोई सन्देह नहीं कि अर्थे-व्यवस्था दोपपूर्ण होती है, तव समाज मे विकार बढते है । भ्रथ॑-व्यवस्था का परिवर्तन एक राष्ट्रीय प्रश्न है | राष्ट्रीय नेताझो के सामने अभी समाजवादी समाज की स्थापना का लक्ष्य है। अरुब्रत-भ्ान्दोलन का लक्ष्य है, चरित्रवानु समान का निर्माण । अथ -व्यवस्था सुघरे विना चरित्रवानू बनने मे कठिनाई होती है तो चरिन्नवान्‌ वने बिना समाजवादी समाज वने, यह भी सम्भव नहीं है । इसलिए मै बहुधा राष्ट के




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