नवाबी मसनद | Navaabii Masanada

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Book Image : नवाबी मसनद  - Navaabii Masanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ नवाबी मसनद चुकने के बाद, झपने सामने एक बद्बूदार छुछूंदर को देख कर चिढ़ और खीभ से भर उठी हो । उन्होंने नवाब साहब की ओर देख कर अद्ब से कहा--झब आप ही देखिये हुजूर, इस बीसवीं सदी के जमाने में भी यह अलादीन के चिराग की बेहूदा बेपर की बातें उड़ा रहे हैं !' पहलवान को तैश श्रा गया । बोले--'यह बेपर की बातें हैं, गरीबपरवर ? अभी उस दिन तो सनीमा में अपनी आँखों से देखे चले आ रहे हैं। क्या अजीब करिश्मा था !--आर यह कह रहे हैं कि बेपर की ?--वाह !' सबेरे ही नवाब साहब के पड़ोसी मियाँ हैदर हुसेन उन्हें “साइंस के करिश्मे बता चुके थे । इस वक्त उन्हें वद्दी ख्याल आ गया । हुक्के के दो-तीन क़श इतमीनान के साथ खींचते हुए गम्भीरतापूवक बोले--'नहीं यार, इन बातों में कुछ नहीं रक्‍्खा है । यदद साइंस का जमाना है। इसमें अलादीन का चिराग कुछ भी नहीं कर सकता ।' पीरू मियाँ ने फिर कहा--'नहीं हुजूर, यह बात नहीं । उस चिराग में बड़ी ताक़त है । बड़े-बड़े जिननात बस में . . .. . .. .. न 'अ्माँ, क्यों फ़िजूल की बकबक किये जा रहे हो '? हमने लुमसे हजार बार कह दिया कि पीरू, इस किस्म की गुस्ताखी मेरे सामने न किया कीजिये। हर बात में अपनी टॉग जरूर ही अड़ायेंगे ! हाँ जी रमजानी मियाँ. . .?' रमजानी ने विनस्र होकर कहा--“श्रब कैसे अज करूँ, बन्दानवाज ! श्राप ही पढ़ लीजिये न ?”--कहते हुए उन्होंने अखबार आगे बढ़ा दिया । पहलवान को इस बार मौक़ा मिला । जान पर खेल कर उसने कह ही तो दिया--'देखी हुजूर इसकी रुस्ताखी ? यानी कि




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