नवाबी मसनद | Navaabii Masanada
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
141
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ नवाबी मसनद
चुकने के बाद, झपने सामने एक बद्बूदार छुछूंदर को देख कर
चिढ़ और खीभ से भर उठी हो । उन्होंने नवाब साहब की ओर
देख कर अद्ब से कहा--झब आप ही देखिये हुजूर, इस बीसवीं
सदी के जमाने में भी यह अलादीन के चिराग की बेहूदा बेपर
की बातें उड़ा रहे हैं !'
पहलवान को तैश श्रा गया । बोले--'यह बेपर की बातें हैं,
गरीबपरवर ? अभी उस दिन तो सनीमा में अपनी आँखों से
देखे चले आ रहे हैं। क्या अजीब करिश्मा था !--आर यह
कह रहे हैं कि बेपर की ?--वाह !'
सबेरे ही नवाब साहब के पड़ोसी मियाँ हैदर हुसेन उन्हें
“साइंस के करिश्मे बता चुके थे । इस वक्त उन्हें वद्दी ख्याल
आ गया । हुक्के के दो-तीन क़श इतमीनान के साथ खींचते हुए
गम्भीरतापूवक बोले--'नहीं यार, इन बातों में कुछ नहीं रक््खा
है । यदद साइंस का जमाना है। इसमें अलादीन का चिराग कुछ
भी नहीं कर सकता ।'
पीरू मियाँ ने फिर कहा--'नहीं हुजूर, यह बात नहीं । उस
चिराग में बड़ी ताक़त है । बड़े-बड़े जिननात बस में . . .. . .. .. न
'अ्माँ, क्यों फ़िजूल की बकबक किये जा रहे हो '? हमने
लुमसे हजार बार कह दिया कि पीरू, इस किस्म की गुस्ताखी मेरे
सामने न किया कीजिये। हर बात में अपनी टॉग जरूर ही
अड़ायेंगे ! हाँ जी रमजानी मियाँ. . .?'
रमजानी ने विनस्र होकर कहा--“श्रब कैसे अज करूँ,
बन्दानवाज ! श्राप ही पढ़ लीजिये न ?”--कहते हुए उन्होंने
अखबार आगे बढ़ा दिया ।
पहलवान को इस बार मौक़ा मिला । जान पर खेल कर
उसने कह ही तो दिया--'देखी हुजूर इसकी रुस्ताखी ? यानी कि
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