महाकाल | Mahakal

Mahakal by अमृतलाल नगर - Amritlal Nagar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अमृतलाल नागर - Amritlal Nagar

Add Infomation AboutAmritlal Nagar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
महाकाल १३ से कभी वह्‌ खद अकेला हौ, जीर कम्यो-कमी मोनाई बनिये के चिरंजीव न्याडा, बगल में बस्ता दवाएं, नमूदार हो जाते हूँ । चपरासी खिद्ट हुफ्ता-भर से गाव छोड़ कर चला गया है; तब से तीन कमरे तो खुले ही नहीं । कानाई मास्टर जनवरी मं हो पांव छोड़ कर पछाह चला गया था । बाद में सुना, सी० ओ० डो० में मिस्त्री हो गया हू । कानाई मास्टर हु बड़ा अच्छा अ(दभौ । जवं सारा गाव स्कूल ओर पाचू के खिलाफ खडा ही यथा थातब कानाई दहारहो बक कर उससे हाथ भिलाने आथा था । पच्‌ को आंखो के सामने वहु तस्वीर साफ़ शिच गई, जवं चहं ओर कानाई दिबू पंडित की पाठशाला मे एक साथ पठते थ । कानाई दिव्‌ नडित को पाठशाला से अंग न पढ़ सका; मगर उतने में ही चह मजे की बंगला लिख-पढ़ लेता था । बाद में कानाई का पढ़ ना-लिखना छुड़ा कर बाप ने उसे अपनी चिद्या देकर सिस्रो बना दिया--एसा कि दो-चार-पांच गांवों में कानाई मिस्त्री का डंक्रा बजते लग । अपने साथ के पढ़े-लिखों में पांचू कॉलेज में फ़र्ट आया था जोर सरकार से वज्ञोफ़ा छेकर उसके बिलायत जाने को भी कछ अफवाह कनाई ने सुनो थी । पाच जम से गांव मापा हुं; कानाई उससे मिलता तो इस तरह मानों पॉचू का सहुयाठी होने के नाते उसे सी आत्मगौरव का बोध हो रहा हो । यह बात हूमरीहं कि कनाई उससे मिलता कम ही था । दित-भर अपने काम में फंसा रहता था 1 पानं बर्न्‌ करन्‌ के किए कान साप्ताहिक 'दिश' को प्रह बन गया भाः, सो हुफते-भर मे एक-एक विज्ञापन तक घट के एो जाता था । जब से दिशः उसके पास आने लगा, तन से किसी जक, किसी भी पेज, कविता-कहानी, लेख, नटक्-फाटकः से केकर चिह्लापनं तकः किसी विधय भे कानाईं मास्टर कोक्तर कतो छेड़ भर दे सोर फिर देखें कि खट से मशीन चालू हो जाती हूं । पांचू ने एक ब,र उसका रिकार्ड स्थापित करवाया था । आनन्द सटः पूरः फा पूरा एट करलुताने के लिए उतने कानाई मास्टर को चेलेन्ज दिया । उस नभः




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now