गोदने का रंग | Godane Ka Rang
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूरन किनारे खड़ा हो कर मुनिआ का नाच गाना देखता रहा |
प्यार कर लो
छुमुक-छुमुक- डम में बैठे-बैट फि
रायसाहब अब तक जैसे ओसारे में वैठे-बैठे सो रहे हों कि अचानक
मुनिआ और पूरन की इन हरकतों से वे झलल्ला उठे । अकेले होते तो बात दूसरी
थी | उसी ओसारे मे उनके छोटे बड़े तीन बेटे बैठे हुए थे । वही एक किनारे उनकी
दोनों बहुएँ और दो जवान बेटियाँ बैठी हुई थी | उन सबके सामने मुनिआ और
पूरन का इस तरह लाज-शरम घोल कर पी जाना रायसाहब को अच्छा नहीं लग
रहा था । पहले तो उन्होंने सोचा कि कलेसर को बुला कर डाँट दें कि इस तरह
का कछ भी फूहर-पातर उनके दुआर पर नही होना चाहिए । यह क्या मजाक है
कि प्यार कर लो वर्ना ! गीत ही गाना है तो कोई भजन गाते जैसे * है प्रेम जगत
का सार और कोई सार नहीं है' या और भी बहुत से ऐसे भजन हैं । मगर उनकी
बात चलती कहाँ है । चार बात वह कलेसर को सुनायेंगे तो रजिन्दर उन्हें सौ बात
सुनाएगा-*' नहीं देखा जाता तो जा कर सो रहिए । और भी तो देखने वाले हैं |
आप ही की तरह सब लोग बुढ़ा नहीं गये हैं । हिन्दू के पुरनिया सठियाते हैं तो
उनकी अकल भी सठिया जाती है । आप तो जानते है कि ब्रह्मानन्दी भजन और
चक्रवर्ती हिसाब के बाद न तो कोई नई धुन निकली है न कोई नया गणित । फिल्मी
घुन है फिल्मी ! जमाना बदल रहा है !'' रायसाहब ने तो यही सब सोच-समझ कर
कहा था कि नाच दरवाजे पर नहीं, पश्चिम वाले खलिहान पर होगा । वहाँ जगह
भी काफी है । पकड़ी की छाँह है । सारा दोष इसी रजिन्दरा का है । कहता था
कि घर की औरतें तो खलिहान पर नाच देखने जाएँगी नहीं । फिर नाच कराने से
फायदा ! औरतों को खूब नाच दिखाओ । खूब फायदा हो रहा है | रायसाहब वहाँ
से उठ गये । सुधिया को अपनी गोद में से उठा कर रजिन्दर की गोद में बिठा
दिया। रायसाहब ओसारे से निकल कर जब बाहर आये तो लगा कि गीत की धुन
कुछ खास बुरी नही है | वे 'कुछ देर तक घर के पिछवाडे खडे रहे । घारी में जा
कर बैलों की पीठ सहलायी । इस बीच उनके टेंट से गीत की धुन सरक गयी थी।
जब वह लौटकर ओसारे में वैठे तो कलेसर अखाडे मे आ चुका था | उसके सिर
पर टीन का एक टूटा बकसा था । जब भी मुनिआ पूरन की ओर झपटता कलेसर
बीच में आकर खड़ा हो जाता । आखिर मुनिआ ने हार कर उससे पूछा-
“तुम कौन होता है ? तुम क्यों इस तरह बीच में आ कर अडता है ?
क्यों ?''
कलेसर ने सिर पर का बक्सा पटक दिया । बक्से का ढकना छिटक कर
एक ओर हो गया । लोग हँसने लगे | कलेसर मुँह वनाता हुआ मुनिआ की ओर
घूरता रहा, *'हमने अपने मालिक का नौकर होता है | हमने अपने मालिक को
बचाता है । मगर तुम कौन जानवर होती है ?”'
मुनिआ कलेसर का मुँह बनाना देख कर मुस्करा पडा । उसने हँसी
10 ,# थोदने का रंग
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