श्री जैन सिध्दान्त बोल संग्रह - भाग 7 | Sri Jain Siddhant Bol Sangrah Satva Bhag

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Sri Jain Siddhant Bol Sangrah Satva Bhag by हंसराज बच्छराज नाहटा - Hansraj Bachchharaj Nahata

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हंसराज बच्छराज नाहटा - Hansraj Bachchharaj Nahata

Add Infomation AboutHansraj Bachchharaj Nahata

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[१३ 3 बोल नं० पूछ ६८३ (२०) च्ायिक छौर ीप- शमिक सम्यस्त में क्या अन्तर है ? ६७ खु ६८५४ खरवादर प्रथ्वों काय के चालीस सेद शहर ग ६६५८ गणितयोग्य कालपरि- माण के ४६ भेद... रद्द ध८० गूददरथ धर्म के पैंदीस सुख ६८३ (१३) ग्क्तान साधु की[सेचा करना कया साधु के लिये झाव- श्यक है या उसकी इच्छा पर निभंर है १ चचृ ध्प३ (१५) चज्लुदशन की तरद श्रोज्नादि दशेन क्यों नद्दीं कद्दे गये ? श्रोच्रादि भी चज्ञु की तरद दुश्धन में कारण तो हेंद्दी। ६६४ (१९) चोरो का त्याग गाथा 2४ ६७७ चीतीस अतिशय तीथेंड्टर देव के ड्धु ०६ श्ण्दू दद्द बोल नं २ पूछ द्ु ६पर छुत्तीस गुण भाचायं के ६४ १०११ छुप्पन अन्तर द्वीप. र७७ ज ६४८ जम्दूद्वीप में तीथेड्टरो- त्पत्ति के शूट क्षेत्र ६६४ (३४) जीवन की झध्थिरता गाथा १०० र२४ ६५३ (२४) जीच इल्का और भारी किस अकार होता है १ ते ६५३ (३५) तथारूप के झत्त॑यती 'विरति को प्राछुक या अप्रासुक थक छाहार देने से एकान्त पाप होना भगवती श० ८ ह० ६ में किस छापेक्षा से चतलाया है १ १३० ८६४ (२६) तप गांधा ११- २०२ १००१ तियंघ्व के झड़वालीस भ्् श्र्‌० द न्द् धम३ (५) तीथेंकर दीक्षा समय किसे नमरकार करते दें १०३ ६७७ तीथदर देव के चीवीस अझतिशय दे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now