भूदान - गंगा पञ्चम खण्ड | Bhoodan-Ganga Khand 5

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेम और धरम की मस्थापना कड सब भगड़ों का सूल संघर्प छोर पैसा स्याप देखते हैं कि जैसे भगड़े द्रविड़ प्रदेश या हिंदुस्तान में हैं, वैसे दो कुल चुनिया में है। लेकिन इन सबका मूढ्रूप एक ही है । मनुष्य ने “भ्रम का श्यान “से को और 'प्रेम' का स्थान “संघर्ष को दिया है। आज पैसा भौर संवर्प, दोनों चातें दुनिया को सता रददी हैं | इन दिनों छुद्ध लोगों ने यह माना हैं कि प्रेमतस्व से उत्कर् नदी होता, बल्कि संघर्ष से, *काम्पीटिशन” ( स्पर्धा ) से होता दै । फिर श्रम टालने की कोशिश की. जाती और लोगों के दिलो पर पैसा कमाने की घुन सवार दो जाती दै । हम एक-दूसरे की चिता करें सारांश, संघर्ष और पैसा; ये दो दोप सब झगड़ों के मूल में हैं, फिर उसे कोई भी माम दिया जाय । कहीं उसे “हिन्दू-विदद्धसुसलमान” का साम दिया जाता है, तो कद्दीं 'हिंदुस्तान-विरद्ध-पीफिस्तान” का । अभी भाप देख रहे हैं कि पाकिस्तान में डाक्टर खान साइब सर अब्दुल गफ्फार खान के बीच झगड़ा, चैदा हुआ दै। गफ्पार सान कहते हैं कि 'पठानों का भी अस्तित्व मानना व्वादिए; तो दूसरा पद कहता दे, 'ये सारे मांत मेद मिय्या हैं, कु सब एक समुद्ध बनना 'वाहिए ।* इस तरद वहीं इते *पठानिस्तान-विरुद्ध-दूसस पद्म” का रूप श्ायां दे । कईी इसे 'त्राझअण-विद्द्ध-ज्ञाप्षणेतर' का रूप आता है, कहीं पब्यापारी-यिरद्ध-माइक-वर्ग”, कहीं “कैक्टरी के मालिक-विदद्ध-मजदूर', कहीं 'साम्य- पादी-विरुद-पूँनीवादी”, तो कीं अरब-विरुद्धइजराइल' और फहीं 'तमिल-विरद्ध- सिंह का सवाल पेश होता है । इसके पासों रूप दीखते हैं, पर मूलस्वरूप सडक ही हे । जिस तरदद परमेश्वर अनेक रूप लेता है, उसी तर रादस मी कामरूपी ( अनेकरूपी 9 दोता दै | उगर इन सब झगड़ों को खतम करना हो, तो इस्एफ मनुष्य को शसीर- थम से अन्न-उपपत्ति के काम में अपना योग देना चाहिए.। जिसे भूख लगती है, उसे भूस मिटाने के लिए दारीर-परिश्रम का मत लेना और दूसरों को जिल्टाकर जीना चाहिए, दूसरों की सेया में अपना जीवन समप्रंथ करना साहिए । हमें




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