श्री भद्रबाहुचरित्र | Shrii Bhadrabaahucharitr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) हैं तो उनमें कितने ऐसे हैं जो जैन मतको स्त्तंत्र मत न समझ कर बोद्धादिकी शाखा-विद्ेष सभझते हैं । इसे हम जेनियोंकी भूल छोड़कर दुसरोंकी गलती नहीं कह सकते । क्तोंकि--जिम प्रकार बोद्धोंका इतिहास प्रसिद्ध होनेसे उन्हें सब जानने लग गये, यदि उसी प्रकार जेनियोंका इतिहास आज यदि संमारमें प्रचलित होता तो कया यह संभव था कि जेनी लोग योंही संसारके किमी कोनेमें पड़ २ मड़ा करते ? हम इस अन्ध श्रद्धा पर विधास नहीं कर समते । क्या आज जेनि- यॉमें विद्वान, महात्मा तथा परोपकारी पुरुपोंकी किसी तरह कमी है जो उनके प्रसिद्ध होनेमें कार प्रतिबन्ध हो ? नहीं । हां यदि कमी है तो उस प्राचीन महार्पियोंक वास्तविक ऐतिहासिक वृत्तान्तकी । यदि जन समाज इस बात पर लक्ष देगा और इस विषयकी खोजमें जी जानसे ठगेगा तो कोई आश्रय नहीं कि वह फिर भी अपने पूवजोंका उज्वल सुयशस्यम्भ संसारके एक छोरसे लेकर दूसरे छोरतक गाढ़ दे । और एक वक्त सारे संसारमें जेनघमंका वास्तविक महत्व प्रगट कर दे । क्योंकि... उपाये सत्युपयस्प प्राप्त: का प्रतिबन्धता । पातालस्थं जबं यन्त्रा्करस्थ क्रिपन यतः! ।। प्राप्त होनवाली घस्तुक लिये उपाय किया जाय ता उसमें कोई प्रतिरोधक नहीं हो सकता । क्योंकि-यंत्रके द्वारा तो पातालस भी जल निकाल लिया जाता है ।




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