आधुनिक हिंदी काव्य में क्रांति की विचार धाराएँ | Aadhunik Hindi Kavya Me Kranti Ki Vichar Dharay

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Aadhunik Hindi Kavya Me Kranti Ki Vichar Dharay by डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सु क्रान्ति ब्रान्ति मोर मामय पिरास ग्रास्ति मानव के विकास वी एक क्या है। जीयन ये प्रस्येर क्षेत्र क॑ विस य॑ पीछे श्राम्ति का बहुत पडा दाथ है । मानव थे स्वोगीण विज्ाठ थी वद्द आधघारशिला है| सम्भय है कि मात के अमाव में मानव आदिम सम्यता से आगे नहीं बहा दोता और विवास थी साम्प्रतिरू ऊँचाई उसे प्रास नहीं होती । जीवन थी नयी दिचारओं थी जज या श्रेय भुन्ति को दै | ग्रान्ति जीवन की स्वाभाविक गति दै। प्करस जीवन जीते-जीते मनुष्य में औदास्य, *र्पता और पीरसता सा जाती है) इसल्ए बद्द जीयन की गति में परिबतस चाइता हैं । परिवर्तन ही जीगन है । परिवतेन के अमाव में लीवन जठ हो जायगा । यद्द जइठा द्दी मृत्यु है । इरल्ए, अपेक्षित है कि पुरानेपन वो छोड़कर सीवन नयी. घार यदे, नये बूलों वो थूमे, नयी दिशाओं की ओर सअप्रसर दो । यही उसकी स्वाभाविकता दै | घ्रान्ति फी ध्याख्या दाब्दकीशों में शान्ति था तात्पय ऐसा परिचतन बताया गया है, 'जिससे समाज में उथल पुथर हो जाती दै, सामालिक सपटन बदल जाता दै तथा मौलिक नवशिमाण होता है' । सेजिनी के अनुसार, “इतिहास पुरुष के लीवन में दोनेवाली सम्पूर्ण उथल- पुथलू का नाम दै घातति' । उपयासरार पिकरर हगो में घान्ति थी विवेचया बरते हुए कहा है. 'नातति फ्नि तत्वों की. बनी दोती है * किसी तत्प की मी नहीं और सभी तरवों थी, ऐसी बिजली लो एकाएक छुट पढ़ती है, घाध जाती है, ऐसी चिनगारी लो एकाएक प्रज्वल्ति हो पड़ती है, ऐसी घुमकड दक्ति--बौर मदइल एक सौंस दी | चेसर योत्स के धाब्दों मे क्रान्ति और जिफास दोनी में परिवतन का भाव है | प्रथम शय्द इितीय दी. अंपेशा शीघ्रगामी परिचतन का अर्थ देनेवाला समझा लाता है श्री जवाइरलाल नेहरू ने विश्व इतिहास वी झल्व मं ब्रान्ति के विदलेपण में कहा है, “खुशहाली और नान्ति में मेल नहीं होता | प्ान्ति दा अय है परियतन ।” दादा कनाडा ₹ै क्रातिशराविखनाय राय, पू० ७1 २. भारतीय रग़तन्य समर--विनायव टामोरर साविरवर, पू है । है. साप्ताहिव हिंदुस्तान, १८ आगम्त १५५७ के अर में दुन्दावनसराल बम वा निवध | ४ छान्ति दे नूतन छितित--चेसूर दो से, हु २४७ ।




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