शांति के पथ पर - दूसरी मंजिल | Shanti Ke Pathpar - Dusri Manzil

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Shanti Ke Pathpar -  Dusri Manzil by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'विश्वचन्घुत्व और अध्यात्मवाद जी के कारण समुष्य-मलुष्यमे विरोधका वातावरण पलपत्ता है । मदयपानसे व्यक्ति उन्मत्त बनता दे; पर सानसिक श्रान्तिसे तो चत्मत न बने 1 आाजका युग आदुर्शकी वाततें करता है, उस पर चला नहीं | आदशौसे दूर हटता जा रहा है । सानव आज मगडनेसे व्यस्त है। आपसी कछद्द, बेमलस्य; दे््या प्रलयकालका चित्र सामने छा रहे हैं | प्रलयका छमे मैत्री; प्रेम लासकी कोई 'वीज नद्दीं द्ोगी | उस समयसे जो होनेका है वह दोगा किन्तु बह. अभी फ्यो दो रहा है । साम्प्रदायिक कलह भी आज कम नहीं है। एक की दूसरे पर चक्नचष्टि दे । सुमे खेद दै कि आज जेन-सम्प्रदाय भी करू की छपटमसे भू. उस रहे है । सम्प्रदाय प्रथकू दो सकते है, विचारों मे मत्तभेद दो सकता है पर मतभेदके कारण परस्पर सगड़ना, एक दूसरेकी छींटाकसी करना तो उचित नहीं । आखिर मानते तो सब भगवान्‌ मद्दावीरके आदर्शीकों ही हैं । भगवाव्‌ मद्दावीर के अलुयायिओमे सहदद्यता और बन्थुत्वकी सावना छोनी 'चादिए। एक दुसरेका सहयोगी बनकर व्यापक दृष्टिकोणसे सत्य- अ््सिका असार करना चादिए । आज कलह-पैमनस्यकी आवश्यकता नहीं; सगठन; प्रेम ब सयोगकी आवश्यकता है| सद्दयोगके बदले रोडें अटकाना तो सर्वधा अध्म्य है । मैं यद्द भी स्पष्ट कद्द देता हू कि सास्प्रदायिक मावनाओंकों भश्रय देनेवाले सम्प्रदाय खतरेसे परे नद्दीं । उनका भविष्य




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