द्रौपदी - विनय अथवा करुण - बहत्तरी | Draupadi - Vinay Athava Karun Bahattari

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Draupadi - Vinay Athava Karun Bahattari by श्री रामनाथ - Shri Ramnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२८ 2 दाब्दार्थ--बेध्यो (सं० विद्ध ) न्लबेवा । मछ न मत्स्य। जिण बार > जिसे समय । माण न्न्मान । दुजोवन स्‍ दुर्वोवन को । मेटियोँ न सिटाया, दूर किया । कच न्य्बाल । उग खार-उस ख़ार से । 'खार' फारसी दाब्द हू जिसका अथ हू डाहयाइष। थां-्तुम्हार । बठचया थकां > बढ हुए। भावार्थ--जिस समय दुर्योधन ने भरी समा में दुःशासन के द्वारा द्रौपदी को पकड़ बुलाया, उस समय वह अर्जुन को संबोधित करके कह रही है-- जिस समय तुमने मत्स्य को बेघ दिया था और दुर्योधन के मान को मिंटा दिया था ( तभी से वह खार खाये बैठा था ); उसी द्वेष के कारण आज मेरे बाल खींचे जा रहे हैं । किन्तु हे पृथा के पुत्र : यह सब तुम्हारी उप- स्थिति में हो रहा हैं और तुम बैठे-बेठे देख रहे हो! द्रौपदी-स्वयंवर में जिस अर्जुन ने कौरवों का मान-मदंन कर दिया था, आज वही अर्जुन अपनी विवा- हिता पत्नी का अपमान अपनी आँखों देख रहा है 1 ॥ ३ ॥ दि०--द्ौपदो-स्वयंदर के अवसर पर एक सछली ऊपर टाँग दो गई थी. जिससे कछ नीचे हट कर एक चक्र घूम रहा था । दुपद ने प्रतिज्ञा की थो. कि जो कोई इस मछली की आँख को बाणों से बेघ देगा, वही मेरी पुत्री ब्हो प्राप्त कर सकेगा *इुद सज्यं घनतु: कृत्वा सज्जेरेभिइच सायक: । अतीत्य लक्ष्य यो वेद्धा स लब्चा मत्सुतासिमाम्‌ ॥।'' द्रौपदी के भाई प्रयुम्न ने भी इसी तरह की बात कही थी-- *इुद घनुलुक्यमिमे च बाणा: श्वण्वन्तु में भूपतय: समता: ।... छिद्रेग यंत्रस्प समपंपध्व॑ दारे: शितेव्योमचरेदशाघ: ॥ छ्तन्महत्कम करोति यो ये कुलेन रूपेण बलेन युक्त: । तस्पाद्यमार्वा मगिनी समेयं कृष्णा भवित्री न सदा बबोसि ।/” सूतपुत्र होने के कारण कर्ण को लक्ष्य-भेद का अवसर नहीं दिया गया था । जब कोई क्षत्रिय लक्ष्य-मेद न कर सका तो अर्जुन ने उठ कर लक्ष्य-भेद किया ध्यों मछ जिग बार' में अर्जुन द्वारा लक्ष्य-मेद की इसी अन्तगंत रे कित पूर्वे-शौर्य का स्मरण दिला कर द्रौपदी




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