बोधिसत्व चरित | Bodh Jivan Padhatee
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१०)
अर्थ--भूतकाल के बद्ध-प्रदरशित धर्मों, भविष्यकाल के बुद्ध-प्रदर्शित
धर्मों तथा वर्तमान काल के वुद्ध-प्रदर्शित धर्मों को में सदा वंदना करता हूं ।
नत्थि मे सरणं अघ्ञ्न॑ं, धम्मो मे सरणं वर
एतेन सच्चवज्जेन, होतु मे जयमंगल ॥।
अर्थ--हमारा कोई दूसरा दारण नहीं है । केवल घर्म ही हमारा
उत्तम-दारण है । इस सत्य-वाक्य के प्रताप से हमारा जय-मंगल हो
य॑ किचि रतनं लोके, विज्जति विविधा पुथु ।
रतन घम्मसमं नत्थि, तस्मा सोत्थि भवन्तु में ॥।
अर्थ--संसार में जितने भी विविध रत्न विद्यमान हैं। उनमें
कोई भी. रत्न धर्म के समान नहीं है। इस सत्य के प्रताप से हमारा
कल्याण हो ।
३. संघ-वंदना
सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, उजुपटिपन्नो भगवतों
सावकसंघो, ब्यायपटिपन्नो भगवतों सावकसंघो,
सामी चिपटिपन्नो भगवतों सावकसंघो । यदिद चत्तारि
पुरिसयुगानि, अट्ठपुरिसपुग्गला एस भगवतों सावकसंघों
आहुणेय्यो, पाहुणेय्यो, दक्खिणेय्यो, अब्जलिकरणी य्यो, अनुत्तरं
पुरूडाखंत्तं लोकस्साति । संघ जिवितपरियन्तं सरणं गच्छामि ॥।
अर्थ--मगवान का श्रावक संघ सुत्दर-मार्ग पर चलनेवाला है,
आर्य-मार्ग पर चलने वाला है, न्याय-मार्ग पर चलने वाला है तथा समी-
चीन माग॑ पर चलने वाला है । यही जो भार्य व्यक्तियों की चार जोड़ियाँ
हैं-पह जो' आठ प्रकार के व्यक्ति हैं, यही भगवान का श्रावक-संघ हैं । यह
संघ आदर करने योग्य है, आतिथ्य करने योग्य है, दान-दक्षिणा देने योग्य
तथा हाथ जोड़कर नमस्कार करने योग्य है । यह लोगों के लिए सर्वेश्रेष्ठ
पुण्य-क्षेत्र है । में अपने जींवन-पर्थेन्त संघ की दारण ग्रहण करता हूं ।
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