बोधिसत्व चरित | Bodh Jivan Padhatee

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Bodh Jivan Padhatee by आनंद कोशल्यायन - Anand Kaushalayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१०) अर्थ--भूतकाल के बद्ध-प्रदरशित धर्मों, भविष्यकाल के बुद्ध-प्रदर्शित धर्मों तथा वर्तमान काल के वुद्ध-प्रदर्शित धर्मों को में सदा वंदना करता हूं । नत्थि मे सरणं अघ्ञ्न॑ं, धम्मो मे सरणं वर एतेन सच्चवज्जेन, होतु मे जयमंगल ॥। अर्थ--हमारा कोई दूसरा दारण नहीं है । केवल घर्म ही हमारा उत्तम-दारण है । इस सत्य-वाक्य के प्रताप से हमारा जय-मंगल हो य॑ किचि रतनं लोके, विज्जति विविधा पुथु । रतन घम्मसमं नत्थि, तस्मा सोत्थि भवन्तु में ॥। अर्थ--संसार में जितने भी विविध रत्न विद्यमान हैं। उनमें कोई भी. रत्न धर्म के समान नहीं है। इस सत्य के प्रताप से हमारा कल्याण हो । ३. संघ-वंदना सुपटिपन्नो भगवतो सावकसंघो, उजुपटिपन्नो भगवतों सावकसंघो, ब्यायपटिपन्नो भगवतों सावकसंघो, सामी चिपटिपन्नो भगवतों सावकसंघो । यदिद चत्तारि पुरिसयुगानि, अट्ठपुरिसपुग्गला एस भगवतों सावकसंघों आहुणेय्यो, पाहुणेय्यो, दक्खिणेय्यो, अब्जलिकरणी य्यो, अनुत्तरं पुरूडाखंत्तं लोकस्साति । संघ जिवितपरियन्तं सरणं गच्छामि ॥। अर्थ--मगवान का श्रावक संघ सुत्दर-मार्ग पर चलनेवाला है, आर्य-मार्ग पर चलने वाला है, न्याय-मार्ग पर चलने वाला है तथा समी- चीन माग॑ पर चलने वाला है । यही जो भार्य व्यक्तियों की चार जोड़ियाँ हैं-पह जो' आठ प्रकार के व्यक्ति हैं, यही भगवान का श्रावक-संघ हैं । यह संघ आदर करने योग्य है, आतिथ्य करने योग्य है, दान-दक्षिणा देने योग्य तथा हाथ जोड़कर नमस्कार करने योग्य है । यह लोगों के लिए सर्वेश्रेष्ठ पुण्य-क्षेत्र है । में अपने जींवन-पर्थेन्त संघ की दारण ग्रहण करता हूं ।




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