अध्यात्मरामायणभाषा बालकाण्ड | Adhyatmramayanbhasha Baalkhand

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Adhyatmramayanbhasha Baalkhand by पंडित हरिप्रसाद भागीरथी जी - Pandit Hariprasad Bhagirathi Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.. बाठकांड सर्ग ३ थक न रानि होती है, विसीमकार ज्ञात और अक्ञान दोनों शुद्ध चेतन्यघन भीरामचन्दजीकेविपें किसमकार स्थित ोसके हैं ॥ २३ ॥ तिसकारण सर्वोपर्यानन्दमय, विज्ञानरुप, अज्ञानके साशी, अरविन्द्ठोचन शीरामच- इजीकेविंपें अज्ञान नहीं हो सके है, और मोहका कारण मायाका संब- न्थ्ती नहीं हैं ॥ २४ ॥ इस विषयमें' गुप्त रखने योग्य अत्यन्त दुर्छभ मो- कक सांधन श्रीसीताजी और श्रीरामचन्द्रजी तथा बायुपुत्र हवुमानजीका संवाद कहताहूँ ॥ २५ ॥ पूर्वकाठमें रामावतारके समय शीरामचन्दजी, , , देवडोही रावणकों संबाममें पुत्र और सेना तथा वाहनों सहित मारकर॥ २६,॥ भीसीवाजी और लक्ष्मणणी तथा सुप्रीव और हनुमान आदि वानरॉकरके सहित रणमें म्ठाधाकों माप्त हो अयोध्या नगररीकेविषं पहुँचे ॥ २० ॥ और राज्यामिषेककों माप्त होकर वसिष्जी आदि महात्माओंकरके युक्त, को- : टिसूरयकी समान कांतिमाद रासचन्द्रजी सिंहासनपर विराजमान थे ॥ २८ ॥ . तित्तसमय महामति हनुमातजीकों हाथ जोडेहुए सन्मुख स्थित, कछतकृत्य,.. विपयभोगकी अभिलापारहित केवल ज्ञानकीही अपेक्षायुक्त देखकर॥२९॥ थीरामचन्दजी भीजानकीजीसे यह वचन बोले कि-हे सीते ! हनुमानजीके अर्थ मेरा निरुपाधिक स्वरूप वर्णन करो, यह निष्पाप और तत्वज्ञावका अधिकारी तथा हमारिविें भक्ति करनेवाला हे ॥३०॥ संसारको मायास्व- रुपकरके मोहित करनेवाठी जंनककुमारी श्रीसीताजी रामचन्द्रजीके कथ- नकों भंगीकार करके, निरुपाधिक स्वरूपकों जाननेका निश्वय करके श्रणा- _ गत आएडुए भीहनुमानजीके अथे वर्णन करनेठगी ॥ ३१ ॥ श्रीसीताणी ' बोछी. कि हे हनुमन ! श्रीरामचन्द्जीको सचिदानन्दरवरूप, अद्वितीय, सब « प्रकारकी डपाधिशुन्य, सत्स्वरूप, और मन तथा वाणीके अगोचर परबझरुप जानी ॥ ३९ ॥ और आनन्दस्वरूप, रजोगुणशून्य, शान्तस्वरुप, षडौव विकारशून्य अवियाकरके रहित, सर्वच्यापी, सर्वान्‍्तस्यीमी, रवभ्रकाश, कक टिय पिटटसमरनिसिवननमिए ' 'जायते १ अस्ति २ चर्दते ४ विपरिणमते ४ अपन्लीयते ५ नशयति दे इति पड- भावधिकास।




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