अध्यात्मरामायणभाषा बालकाण्ड | Adhyatmramayanbhasha Baalkhand
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
476
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित हरिप्रसाद भागीरथी जी - Pandit Hariprasad Bhagirathi Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand).. बाठकांड सर्ग ३ थक
न रानि होती है, विसीमकार ज्ञात और अक्ञान दोनों शुद्ध चेतन्यघन
भीरामचन्दजीकेविपें किसमकार स्थित ोसके हैं ॥ २३ ॥ तिसकारण
सर्वोपर्यानन्दमय, विज्ञानरुप, अज्ञानके साशी, अरविन्द्ठोचन शीरामच-
इजीकेविंपें अज्ञान नहीं हो सके है, और मोहका कारण मायाका संब-
न्थ्ती नहीं हैं ॥ २४ ॥ इस विषयमें' गुप्त रखने योग्य अत्यन्त दुर्छभ मो-
कक सांधन श्रीसीताजी और श्रीरामचन्द्रजी तथा बायुपुत्र हवुमानजीका
संवाद कहताहूँ ॥ २५ ॥ पूर्वकाठमें रामावतारके समय शीरामचन्दजी,
, , देवडोही रावणकों संबाममें पुत्र और सेना तथा वाहनों सहित मारकर॥ २६,॥
भीसीवाजी और लक्ष्मणणी तथा सुप्रीव और हनुमान आदि वानरॉकरके
सहित रणमें म्ठाधाकों माप्त हो अयोध्या नगररीकेविषं पहुँचे ॥ २० ॥ और
राज्यामिषेककों माप्त होकर वसिष्जी आदि महात्माओंकरके युक्त, को-
: टिसूरयकी समान कांतिमाद रासचन्द्रजी सिंहासनपर विराजमान थे ॥ २८ ॥
. तित्तसमय महामति हनुमातजीकों हाथ जोडेहुए सन्मुख स्थित, कछतकृत्य,..
विपयभोगकी अभिलापारहित केवल ज्ञानकीही अपेक्षायुक्त देखकर॥२९॥
थीरामचन्दजी भीजानकीजीसे यह वचन बोले कि-हे सीते ! हनुमानजीके
अर्थ मेरा निरुपाधिक स्वरूप वर्णन करो, यह निष्पाप और तत्वज्ञावका
अधिकारी तथा हमारिविें भक्ति करनेवाला हे ॥३०॥ संसारको मायास्व-
रुपकरके मोहित करनेवाठी जंनककुमारी श्रीसीताजी रामचन्द्रजीके कथ-
नकों भंगीकार करके, निरुपाधिक स्वरूपकों जाननेका निश्वय करके श्रणा- _
गत आएडुए भीहनुमानजीके अथे वर्णन करनेठगी ॥ ३१ ॥ श्रीसीताणी
' बोछी. कि हे हनुमन ! श्रीरामचन्द्जीको सचिदानन्दरवरूप, अद्वितीय, सब
« प्रकारकी डपाधिशुन्य, सत्स्वरूप, और मन तथा वाणीके अगोचर परबझरुप
जानी ॥ ३९ ॥ और आनन्दस्वरूप, रजोगुणशून्य, शान्तस्वरुप, षडौव
विकारशून्य अवियाकरके रहित, सर्वच्यापी, सर्वान््तस्यीमी, रवभ्रकाश,
कक टिय पिटटसमरनिसिवननमिए
' 'जायते १ अस्ति २ चर्दते ४ विपरिणमते ४ अपन्लीयते ५ नशयति दे इति पड-
भावधिकास।
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