कथाकोशप्रकरण | Kathakosa Prakarana Ac 4176 (1941)

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kathakosa Prakarana Ac 4176 (1941) by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

Add Infomation AboutAchary Jinvijay Muni

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ख० बावू श्री बहादुर सिंहजी सिंधी और सिंघी जेनग्रन्थमाला 0 के [समर णा ञ्र लि ] छेक- मेः अनस्य भाददां पोषक, कार्यसाधक, उत्साहप्रेरक और सहदय ख्रेहारपद बावू भी बहादुर सिंहजी सिघी, निन्‍्टोंने मेरी विशिष्ट प्ररणासे, भपने स्वगवासी साधुचरित पिता शी डाछचंदजी खिघीके पुण्यस्मरण सनिमित्त, इस 'सिघी जन ग्रस्थमाला” की कीर्तिकारिणी स्थापना करके, इसने: छिये श्रतिषष॑ हजारों रुपये खर्य करनेकी शादी उदारता प्रकट की थी; जोर जिनकी ऐसी भसाधारण जानभक्तिके साथ अन्य भार्थिक उदारवृत्ति देख कर, मेने भी अपने जीवनका विशिष्ट शक्तिशाली और बहुत ही मूल्यवान भयदेव उत्तर काऊ, इस प्रस्थमाजाके ही विकास और प्रकाधाके छिये सबवात्मना रूपसे समर्पित कर दिया था; तथा जिन्होंने इस श्रन्थमा छाका दिगत १३-१४ ब्षोमें ऐसा सुंदर, समद्ध और सवादरणीय कार्यफल निष्पन्न हुआ देख कर, भविष्यमें इसके कार्येको और अधिक प्रगतिमान तथा विस्तीर्ण रूपसें देखनेकी अपने जीवनकी एक मात्र परम अभिकाषा रखी थी; और तदनुसार, मेरी प्रेरणा और योजनाका भनुसरण करके प्रस्तुन अ्रस्थमाछाकी प्रयम्घार्मक कार्यव्य वस्था भारतीय विधानवन' को समांपंत कर देनेकी महती उदारता दिखा कर, जिन्होंने इसके भावीके सम्बन्धमें निश्चित हो जानेकी आशा की थी; वह पुष्यवान्‌ , साहित्यर सिक, उदारमनस्क, अखताभिलापी, अभिनन्दनीय आत्मा, अब इस ग्रन्थमाठाक प्रकादानोंको प्रत्यक्ष देखनेके लिये इस संसारमें विमान नहीं है। सन्‌ १९४४ की जुछाई मासकी ७ वीं तारीखको, ५९ बर्पकी अवस्थामें वह महान आत्मा इस लोकमेंसे प्रस्थान कर गया । उनके भव्य, आदरणीय. स्पृहगीय, और श्हाघनीय जीवनकों अपनी कुछ ख्रेहारमक समर णां ज लि” प्रदान करनेके निमित्त, उनके जीवनका धोड़ासा संक्षिप्त परिचय आाठेखित करना यहां योग्य होगा । सिंधी जीके जीननके साधकें मेरे स्वास स्वास स्मरर्णोका विस्तृत आखलेखन, मेंने उनके ही “स्मारक न्थ' के रूपमें प्रकाशित किये गय ' भारवीय बिधया' नामक पत्चिकाके सृतीय भागकी लनुपूर्तिमें किया है । उनके सम्बन्ध विशोष जाननेकी इच्छा रखने बाद. याचकोंको यह. स्मारक अन्थ' देखना चाहिये । थे चालू श्री बहादुर लिंहजीका जन्म बंगाकके मुर्शिदाबाद परगनेमें स्थित अजीमगंज नामक स्थानमें संवत्‌ १९४१ में हुआ था । यह बाबू डाचंदूजी सिंघीके एकमात्र पुत्र थे । उनकी माता श्रीमती मनु- कुमारी अजीमगंजके ही बद कुट्म्बके बाबू जयचंदजीकी सुपुत्री थी । श्री मन्नकमारीकी एक बहन जगतसेठजीके यहाँ व्याही गई थी जोर दूसरी बहन सुप्रसिद्ध नाहर कुटुम्बमें ब्यादी गडढ' थी । कछकत्ताके स्व० सुप्रसिद्ध जन स्कॉछर और भम्रणी व्यक्ति बाबू पूरणचंदजी नाहर, बाबू बहादुर सिंहजी सिंघीके मासेरे भाई थे । सिंघीजीका ब्याइ बालुचर- अजीमरगंजकें सुप्रतिद्ध धनात्य जेगगृदहस्य कक्ष्मीपत सिंहजीकी पाती और छत्रपत सिंहजीकी पुत्री श्रीमती तिकक सुंद्रीके साथ, संबव्‌ १९५४ में हुआ था 1 इस प्रकार श्री बहादुर सिंहजी सिंघीका काइम्बिक सम्बन्ध बंगाठक खास प्रसिद्ध जेन कुटुम्बोंकि साथमें प्रगाद रूपसे संकलित था । बाबू श्री बहादुर सिंह जीके पिता बाबू ढाठचंदजी सिंघो बंगाखके जैन महाजनोमें एक बहुत ही प्रसिद्ध और सक्षरित पुरुष हो गये हैं । वह अपने अकेले स्वपुरुषाथ और स्वउद्योगसे, पक बहुत ही साधारण स्थितिके ब्यापारीकी कोटिमेंसे कोव्यधिपतिकी स्थितिको पढ़ुँचे थे और सारे बंगाकमें एक सुप्रतिष्ठित और प्रामाणिक ब्मापारीके रूपसें उन्होंने विशिष्ट स्याति प्राप्त की थी । एक समय वे बंगाकके सबसे




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now