श्री अंतक्रद्द्षा - सूत्र | Sri Antakirid Dsha Sutra (1993) Mlj

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Sri Antakirid Dsha Sutra (1993) Mlj by अमर मुनि - Amar Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैली-जैन सुत्रों में जिन सूत्रों में आत्मा कर्म आदि तात्विक विषयों की प्रधानता है, वे द्रव्यानुयोग विषयक कहे जाते हैं । जिनमें आचार, समाचारी आदि का वर्णन है-वे आगम चरणानुयोग प्रधान हैं । जिनमें गणित, लोक, भूगोल, खगोल, नदी-पर्वत आदि का वर्णन है-गणितानुयोग में उनका समावेश हो जाता है । तथा जिन आगमों में चरित्त या कथा शैली की प्रधानता है वे ““कथानुयोग'' प्रधान आगम माने गये हैं । ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, विपाक, निरयावालिका तथा अन्तकृदूदशा सूत्र आदि कथा या चरित्र प्रधान आगम होने से इनकी गणना कथानुयोग में की जाती है । बर्ण्य बिषय-प्रस्तुत आगम में नब्बे (९०) साधक आत्माओं की साधना का रोचक वर्णउ है । सामान्य रूप में यह तप:प्रधान आगम माना जाता है, परन्तु सम्पूर्ण आगम के विषय पर चिन्तन करने से तप, ध्यान, ज्ञानार्जन, क्षमा आदि सभी को मोक्ष मार्ग मानते हुए सबका समन्वय है इसमें- ७ गीतमकुमार आदि 9८ मुनियों ने १२ मिक्षु प्रतिभा तथा गुणरत्नसंवत्सर तप करके मुक्ति प्राप्त की । # अनीकसेन आदि १४ मुनि १४ पूर्व का ज्ञान प्राप्त कर बेले-बेले के सामान्य तप द्वारा ही कर्मक्षय कर मुक्ति के अधिकारी बने हैं । ७ अर्जुनमाली जैसे साधक सिर्फ छह महीने तक बेले-बेले तप करके, उत्कृष्ट उपशम भाव-क्षमा-सहिष्णुता-तितिक्षा की आराधना द्वारा सिद्धगति प्राप्त करते हैं । क अतिमुक्त कुमार जैसे बाल ऋषि ज्ञानार्जन करके गुणरत्नसंवत्सर तप की आराधना करते हुए दीर्घकालीन संयम पर्याय का पालन कर मोक्ष पधारते हैं । ७ गजसुकुमाल मुनि बिना शास्त्र पढ़े, सिर्फ एक अहोरात्र की अल्पकालीन संयम पर्याय में ही परम तितिक्षा भाव पूर्वक समता भाव में रमण करते हुए शुक्ल ध्यान के साथ मोक्ष प्राप्त करते हैं । & नन्दा, काली आदि रानियों ने कठोर तपःसाधना एवं दीर्घकालीन संयम पर्याय का पालन कर कर्मों का नाश किया है । इस प्रकार तप, संयम, शम, क्षमा, ध्यान आदि मोक्ष के सभी अंगों की सर्वांग साधना का सुन्दर समन्वय इस आगम में प्राप्त होती है । प्रस्तुत सूत्र का आदर्श इस शास्त्र के परिशीलन से पद-पद पर तप, क्षमा एवं शुद्ध ध्यान की विशेष प्रेरणा स्फुरित होती है । इसके साथ ही कुछ विशिष्ट आदर्श चरित्रों की विशेष प्रेरणाएँ भी हमें जीवन्त आदर्शों की ओर संकेत करती हैं; जैसे- 9. वासुदेव श्रीकृष्ण के समान धर्म में दृढ़ विश्वास और गुणों के आदर की भावना तथा धर्म सहायक बनने की उदात्त वृत्ति | कं र१ का




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