माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी शिक्षण | Madhyamik Vidhalayo Me Hindi Shikshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : माध्यमिक विद्यालयों में हिंदी शिक्षण  - Madhyamik Vidhalayo Me Hindi Shikshan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about निरंजन कुमार सिंह - Niranjan Kumar Singh

Add Infomation AboutNiranjan Kumar Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
|| विषय प्रवेश [भाषा का उद्भव, परिभाषा, प्रकृति एवं सामान्य विशेषताएँ, भाषा सीखने की प्रक्रिया, भाषा के व्यावहारिक रूप, भाषा के ्राधार-मानसिक, भौतिक, भापा-झध्ययन सम्बन्धी दृष्टिकोण-भौतिक, समाजशास्वीय, सांस्कृतिक, मनोर्वज्ञा निक] “भाषा के कारण ही मनुष्य मनुष्य है, पर भाषा के श्राविष्कार के लिए उसका पहले से मनुष्य होना आवश्यक है ।”” -वॉन हम्बोल्ट भाषा एक सानवीय कलाऊृति है समस्त प्राणिजगत में केवल मनुष्य को ही भाषा का श्रमूल्य वरदान प्राप्त है। भाषा प्रकृति का वरदान है श्रथवा मानवीय कलाऊृति श्रथवा ईश्वर प्रदत्त शक्ति, यह भाषा वैज्ञानिकों के लिए श्राज तक एक रहस्प श्रथवा शास्त्रार्थ का विषय बना हुम्रा है। बहुत दिनों तक भाषा की उत्पत्ति का “देवी सिद्धान्त” ही मान्य था जिसके श्रनुसार भाषा को ईश्वरीय कृति मान लिया गया था । प्राचीन भारतीय विचारक भी मानते थे कि ईश्वर ने ऋषियों को वैदिक भाषा का ज्ञान प्रदान किया । संस्कृत को इसी कारण 'देववाणी* की संज्ञा प्रदान की गई है। पतंजलि ने ईश्वर को ही भाषा का आदि गुरु माना है । मनुस्मृत्तिकार का कथन है-- “सर्वेपांतु सनामानि कर्माणि च. पृथक पुथक्‌ । वेद शब्देश्य: एवादी पुथक्‌ संस्थांच नि्मने ॥” “दैवी सिद्धांत' से भाषा की उद्पत्ति पर कोई प्रामाशिक प्रकाश नहीं पड़ता, पर इतना तो स्वेमान्य है कि भाषा के वरदान से ही मनुष्य इतना उन्नत प्राणी बन सका है । मैक्समूलर ने ठीक ही लिखा है कि भाषा यदि प्रकृति की देन है तो निस्सदेह ही वह प्रकृति की भ्रन्तिम श्रौर सर्वश्र प्ठ रचना है जिसे प्रकृति ने केवल मनुष्य 1. रचा 15 एक फिए प्ाधघ05 0 86600 00 का एव (0. उएटाए 80660, 6 एपघ5: 06 घाहि&80पर उपघा,”--४०० पिपा00ी..




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now