उपनिषद मंदाकिनी | Upanishad Mandakini

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Upanishad Mandakini by देवदत्त शास्त्री - Devdatt Shastri

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पंडित देवदत्त शास्त्री जी का जन्म भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के कौशांबी जनपद स्थित महेवाघाट क्षेत्रान्तर्गत रानीपुर नामक ग्राम में हुआ था।
इनका गोत्र घृतकौशिक गोत्र था, एवं इनके वंश का नाम कुशहरा था।
यह विद्वान कुल के वंशज सिद्ध हुए क्योंकि इनका कुल पूर्व रुप से ही अत्यंत संस्कृतज्ञ एवं वेदपाठी ब्राह्मण थे, जिनमें पं भवानीदत्त मिश्र, पं देवीदत्त मिश्र, पं शिवदत्त (सिद्ध बाबा) , इनके (देवदत्त शास्त्री)पिता पं ईशदत्त मिश्र और भाई डा. हरिहर प्रसाद मिश्र उल्लेखनीय हैं।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ केनोपनिषद्‌ के लिए मेजना चाहिए । यह तय कर सब ने अझग्निदेव से श्राथना की कि झाप जाकर पता लगाइए कि यह यक्त कोन है ? झग्निदेव को भी अपनी जुद्धि-शक्ति का पूरा झभिमान था उन्होंने तपाक से कहा कि झभी पता लगाता हूँ । दौढ़ते हुए झग्निदेव यक्त के पास पहुँचे । भ्पने समीप अग्नि को खड़ा देखकर यक्ष बोला--तुम कौन हो ? यह सुनकर अग्नि मन दी मन सोचने लगे--कि मेरे अमित तेज से तो सभी परिचित हैं यह कौन है जो मुके पहचानता भी नहीं । उन्होंने तुनुक कर कहा--मैं सर्वत्र विख्यात अग्नि देव हूँ मेरा ही गोरव- शाली नाम जातवेदा है । दर तब यक्ष रूपी परमात्मा. अनजान बनकर बोले--झच्छा झाप भम्निदेव हैं और सब को जानने से ही शाप का नाम जातवेदा पड़ा है बड़ी अच्छी बात है कृपया यह तो बताइए कि झाप में कौन-सी शक्ति है? झाप क्या कर सकते हैं ? बड़े गवें से अम्नि ने कहा--मैं क्या कर सकता हूँ--पर आप जानना चाहते हैं झरे मैं चाहूँ तो सम्पूर्ण .ृश्य जगत्‌ को एक क्षण में राख का देर बना दूँ । यह सुनकर यक्त भगवन्‌ ने अग्नि के सामने एक सूखा तिनका डालकर कहा--झाप तो सब कुछ भस्म करने की झमित शक्ति रखते हैं थोड़ी-सी शक्ति इस छोटे से तिनके को जलाने में तो लगा दें । झग्नि ने इसे अपना झपसान समका और कोपकर के कट उस तिनके के पास पहुँचकर उसे जलाने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी किन्तु उसमें आाँच भी नहीं लगी । श्रह्म ने अपनी दाहक॑ शक्ति अग्नि से खींच लिया था इसलिए तिनका कैसे जलता लेकिन घमण्डी अग्नि को यह बात मालूम न हो सको । घमण्ड से चूर होकर उसने झपनी सारी शक्ति का श्रयोग कई बार उस




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