जीवन्मुक्ति | Jivanmukti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रतिद्वंदिता के नियम ध्यौग प्रेस का नियम ।
छिपा रहता है इसी प्रकार कार्य ोर उसके कारण का संबंध
ऐसी घ्विनाशथावी है कि हम इन दोनों को एक दूसरे से लग
नहीं कर सकते । कार्य सें निजी शक्ति कु नहीं होती । कारण
में जो शक्ति होती है उसी से कार्य में भी संचालन-शक्ति या
जाती है ।
यदि हम घ्पनी दृष्टि फेला कर संसार को देखें तो हम को
वह एक रयाश्षिन्न के समान मालूम होगा जिसमें सचुष्य, जातियों
घ्यौर देश प्रतिष्ठा और धन के ऊपर एक दूसरे से लिरंतर लड़ा
करते हैं, हम यह भी देखेंगे कि निर्वल सनचुप्य हारते हैं घोर
खवल मचजुष्य ( जिनके पास निरंतर युद्ध करने की सामग्री है )
विजय पाते हैं झीर संसार के पदार्थ पर ध्रपना अधिकार
जमा लेते हैं । इस युद्ध के लाथ हम नेक डुम्ख भी देखेंगे
क्योंकि युद्ध से डुःखों वही उत्पत्ति ध्रवश्य होती है । हस देखेंगे
कि पुरुष योर स्त्रियाँ उत्तर दायित्व के बोस के नीचे दूव कर
झ्पनी चेश्ाथों में विफल-मनोरथ होते हैं छोर सब कुछ खो
बेठते हैं, कुडुम्ब झ्रौर जातियों में फूट पड़ जाती है ध्ौर उनके
चिभाग हो जाते हैं घर देश ध्पपनी स्वतंत्रता खो कर दूसरों
की खुलामी करते हैं । झ्ाँखुओं की नदियाँ ब्ह कर घोर दुःख
ध्योर शोक की कथा छुनाती हैं । प्रेमी एक दुसरे से बड़े दुःख
के साथ जुदा होते हैं और वहुत से मनुप्य झकाल तथा श्परवा-
भाविक खत्यु के ग्रास बनते हैं, यदि हम युद्ध की ऊपरी बातों
को छोड़ कर उसकी झ्ाम्तरिक गति पर दृष्टि पात करें, तो दम
को वदुत करके शोक ही शोक दिखाई देगा ।
मनुष्य जब परस्पर स्पर्धा करते हैं तब ऐसी ही ध्मनेक
श् है
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