भगवान महावीर और उनका उपदेश | Bhagavan Mahavir Aur Unaka Upadesh

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Bhagavan Mahavir Aur Unaka Upadesh by कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३४) थे 1 इनकी महारानी -वैशाली के राजा चेटक की पुत्री ज्रिशला या मियकारिणी भगवान, की माता थीं, जा रूप, णुणादि के साथ साथ चिद्या में भी निपुण थीं । चप सिद्धार्थ के चिषय मे यह दृद श्न्ुमान किया जाता है कि दह चज्ियन प्रजा- सत्तात्मक राज्यसंघ में सम्मिलित थे । इन्हीं के पतित्र छह सें सगचान्‌ मद्दाचीर का जन्म चैन्नशुक्का अयेादशी को डा था ! भगवान के गर्भ-समय के छुः मास पहले से ही स्वगलाक के देवों ने रलबृष्रि करना प्रारंभ कर दी थी शार सगवान के जन्मसमय उत्सव मनाया था । चार प्रकार देवों के इन्द्र ओर देव तीथड्र के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और सोक्त कट्याणों-ब्वसर्य पर श्रानन्दोत्सव मनाते हैं। इस समय दिशायें थी निर्मल हागई थी । उन्दर चायु बहने छगी थी | सच जीवों के चाणुमर के लिए खुख का अद्ुभव घाप्त होगया पर बफिका सदर कलम जा था. सदन मत दास है जिससे इन्द्रियों और सन द्वारा जीवाजीवादि पदार्थों का शान पाप्त दो । (२) श्रुवज्ञान--वहद ज्ञान दै जा शास्रों के घध्ययनादि से भाप डी ॥ _. (३) अवधिज्ञान--वदद ज्ञान है जा बिना पर की सददायता के दच्य, चेत्र, काठ, भाव की झपेक्ञा रूपी द्रव्य का ज्ञान कराता हो । (४) मनःपय्यय ज्ञान--प्र्क्ष दूसरे के सन का दाल जानने का ज्ञात। (५) झोर केवल ज्ञान--पूण ज्ञान है श्रथांत्‌ सर्वज्ञता ! '. जैन एवं जैनेतर शाख्र इस युग मे जैन-घर्म के संस्थापक श्री० चषमभदेव को बतछाते है जिनका उल्लेख वेदों में है । इस देतु भग- वान्‌ सद्दावीर से पहिले भी जैनधघर्स विद्यमान था ! झार ूप सिद्धार्थ उस ही के श्रद्धानी थे जैसे मि० विमछचरण _छॉ-एम० ए० ने अपनी शु्क गग५० ए30#लंज एाक्षण७ स्ण रपप0तातंड उपतांक में व्यक्त किया है । कि




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