विचार और वितर्क का वैज्ञानिक विश्लेषण | Vichar Aur Vitark Ka Vaigyanik Vishleshan

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Vichar Aur Vitark Ka Vaigyanik Vishleshan by कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) भावों, विचारों और दब्दॉका महत्व । सदा को भांति रवि भोर शिव उसदिन फिर मिले ती उ होने उस वर्णोजी महाराज का जिफ्र किया जिहोंने उनके नगर में चातर्मास किया था । उनका प्रतिदिन प्रवचन सुनने के लिये नगर के सभो प्रतिष्ठित पुरुष श्ाया करते थे । दोनों मित्रों ने भी निश्चय क्या कि ये भी यर्णोजी का प्रवघन सुेंगे । तद नुसार वे सभाभवन में पहुचे उससमय प्रवचन हो रहा था । वे भी एक घोर बठकर प्रवचन सुनने लगे 1 यह कह रहे धे कि एकवार जव श्रितिम तोधद्धर सवज्ञ सवदर्धी निप्रय ज्ञातपुत्र भ० महावीर बद्धमान का समवशरण राजगृहे निकट विपुलपवते पर प्राया था, तव मगध के सम्राट धेणिक विभ्वसार उनकी ध-दमा करने गये थे । सम वशरण के याहर उर्टो- एव वक्षफो छाया में निलापर बैठे हये मनि धमदचि फो देखा-षह ध्यान मुद्दामें वठें दिख रहे थे। शोणिकर्म व दनाकी भौर पाससे देखा तो वह उनकी रग बदलती हुई मुखाकृति को देखकर शझ्ाइघय चकित रह गये ! मूनिका सीस्य मुख विकत दिल रहा था 1 एत्ता लगता, भानौ प्रोपके कारण बहू नीले पड रह हु । श्रेणिक की समक्रमें कोई बात मे आई । वह भ्राग पदृकर समवशरण के भीतर पटा, णहा सम भाव ताण्डव नतय क्र रहा था--परस्पर विरोधी स्वमाव के जोष भौ श्रपना षर विसारे हये शातति श्रीर सु्से वठे ह्ये भगवद धौर फे दशनं प्रोर उनको भ्रमतवाणौ का रप्तपान कर रह प! भिक ने गथकरटी के पास जाफर सिंहपोठिका के --१२-




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