छहडाला | Chhahadala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१५
उसका स्पष्टीकरण यदद दैः--
सत्यसे किसी भी जीबको हानि दोगी--ऐसा कहना ही बढ़ी
भूल है, अथवा असत् कथनसे ढोगोंको लाभ माननेके बरापर है?
खतका श्रवण या अध्ययन करनेसे जीवोंको कभी दानि हो ही नहीं
सकती । ब्रत-प्रत्यास्यान करनेवाले ज्ञानी हैं. अथवा अआज्ञानी,-यहद
जानना आवदयक है। यवि वे अज्ञानी हों तो उन्हें सच्चे घ्रतादि
होते दी नहीं, इसलिये रन्हें छोड़नेका प्रभन दी उपस्थित नहीं होता ।
यदि ब्रत करनेवाले ज्ञानी होंगे तो छद्मस्थदशामें वे ब्रतका त्याग
करके अशुभमें जायेंगे-ऐसा मानना न्याय-विरुद्ध है । परन्तु ऐसा दो
सकता है. कि वे क्रमशः: झुभभावको टाउकर झुद्धभावकी वृद्धि करें. .
और बद्द तो लाभका कारण हे-दानिका नहीं । इसलिये सत्य कथनसे
किसीको द्ानि दो ही नहीं सकती ।
जिज्ञासुजन विशेष स्पष्टतासे समझ सकें -इस बातको उश्ममें
रखकर श्री अह्झचारी गुत्मबचन्द जीने मूठ शुजराती पुस्तकर्में यथासम्भव
शुद्धि-बृद्धि की है। अन्य जिन-जिन बन्घुओंने इस कार्येमें सदयोग
दिया है उन्हें दार्दिक धन्यवाद !
यह गुजराती पुश्तकका अनुवाद है । इसका छनुषाद श्री
मगनठाठजी जेन, ( वल्ढभविय्यानगर )ने किया है जो इमारी संस्थाके
कई प्रन्योंके और आत्मघर्म-पत्रके अनुवादक हैं: अच्छी तरह
छनुवाद करनेके लिये उन्हें धन्यवाद !
शी बद्ध सगे जयन्ती, रामजी माणेकचन्द दोज्ञी
वीर सं० २४८७
बि५ सं+ २०१७ भप्रमुख--
सोनगढ़ ( सौराष्ट्र ) । श्री दिगम्बर लेन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट
री काका
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