छहडाला | Chhahadala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१५ उसका स्पष्टीकरण यदद दैः-- सत्यसे किसी भी जीबको हानि दोगी--ऐसा कहना ही बढ़ी भूल है, अथवा असत्‌ कथनसे ढोगोंको लाभ माननेके बरापर है? खतका श्रवण या अध्ययन करनेसे जीवोंको कभी दानि हो ही नहीं सकती । ब्रत-प्रत्यास्यान करनेवाले ज्ञानी हैं. अथवा अआज्ञानी,-यहद जानना आवदयक है। यवि वे अज्ञानी हों तो उन्हें सच्चे घ्रतादि होते दी नहीं, इसलिये रन्हें छोड़नेका प्रभन दी उपस्थित नहीं होता । यदि ब्रत करनेवाले ज्ञानी होंगे तो छद्मस्थदशामें वे ब्रतका त्याग करके अशुभमें जायेंगे-ऐसा मानना न्याय-विरुद्ध है । परन्तु ऐसा दो सकता है. कि वे क्रमशः: झुभभावको टाउकर झुद्धभावकी वृद्धि करें. . और बद्द तो लाभका कारण हे-दानिका नहीं । इसलिये सत्य कथनसे किसीको द्ानि दो ही नहीं सकती । जिज्ञासुजन विशेष स्पष्टतासे समझ सकें -इस बातको उश्ममें रखकर श्री अह्झचारी गुत्मबचन्द जीने मूठ शुजराती पुस्तकर्में यथासम्भव शुद्धि-बृद्धि की है। अन्य जिन-जिन बन्घुओंने इस कार्येमें सदयोग दिया है उन्हें दार्दिक धन्यवाद ! यह गुजराती पुश्तकका अनुवाद है । इसका छनुषाद श्री मगनठाठजी जेन, ( वल्ढभविय्यानगर )ने किया है जो इमारी संस्थाके कई प्रन्योंके और आत्मघर्म-पत्रके अनुवादक हैं: अच्छी तरह छनुवाद करनेके लिये उन्हें धन्यवाद ! शी बद्ध सगे जयन्ती, रामजी माणेकचन्द दोज्ञी वीर सं० २४८७ बि५ सं+ २०१७ भप्रमुख-- सोनगढ़ ( सौराष्ट्र ) । श्री दिगम्बर लेन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट री काका




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