पंचलब्धि | Panchalabdhi

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Panchalabdhi by ब्रह्मचारी मूलशंकर देसाई - Brahmchari Moolshankar Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री पचलब्धि श रूद़ि मे फसा हुवा झात्मा सिशिषप रिचार भी नहीं करता कि इतने वर्ष से देव दर्शन करने एव भह्कि करने पर भी मेरी झात्मामें शाग्ति बर्यों नहीं श्राती है ? देव दर्शम में शान्ति नियम से मिलनी ही चाहिये ९ तो भी रूट्रि में ही चर्पो व्यतीत कर रहा है। यदि. यथार्थ आत्म शान्ति के लिये देव दर्शन एव भक्ति करता दोता सो निपमसे जीव विचार करता कि मक्ति करने पर भी शान्ति की गथ भी नहीं श्ाठी है इससे मालुम होता है िं निपमसे भर में छुछ गलही रद्द जाती है। ऐसा पिचार कर श्रपनी गलती निरा- लगे वी नियम से चेटा करता । यदि गलती निकाल कर एक दी बार सच्चे लदसे देयवा दर्शन करता तो जीव मोक्ष के मार्गपर नियमसे श्राउाता । जैसे- एक गुढरिय! था । चदद बहुत सी बफरिया एस सैहें रखता था । चद्द जगलमें ही रहता थो । एफ दिन जगलमे उसी गदडरियेको एक शेर का बन्चा हालका जमा छुगा मिल गया । उम शेर के बच्चे को उठा कर उस गढ़रिये ने अपनी यकरियों तथा मेडों की टोली में रख दिया । शेर के बच्चे को अपने का ज्ञान नहीं है “कि मे कौन हूँ” ? उसने थ्रपना चेहरा हो देखा ही नहीं था परन्तु 'चद बहरयों का चेहरा देखता था इस वारण से बह भी. ” फमे भी बकरी या मेड हू । यहीं 3:




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