राजस्थानी कहावतें - एक अध्ययन | Rajasthani - Kahavaten Ek Adhyayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० राजस्थानी कहावत
पांडित्य के म्रंचर हैं जो मानव-सृष्टि के श्रादिम-काल में अलिखित नैतिक कानून का
काम देती थीं |”
एक झाधुनिक लेखक ने कहावतों को “भौतिकवाद की बीजगसिएत” का नाम
दिया है । डाक्टर वासुदेवशरण श्रग्रवाल के दाब्दों में “लोको क्तियाँ मानवीय ज्ञान के
चोखे और चुमते हुए सुत्र हैं । वे मानवी ज्ञान के घनीसुत रत्न हैं, जिन्हें बुद्धि और
अनुभव की किरणों से सदा फटने वाली ज्योति प्राप्त होती रहती है ।
उक्त सभी परिभाषाशों में कहावत के मुल तत्त्व लोकप्रियता की. उपेक्षानल्क-
गई है । किसी उक्ति में कितने ही गुण रा चाहे क्यों न हों, जब तक वह लोक की उक्ति
नहीं होगी, लोकोक्ति या कहावत नहीं कहला सकेगी । ऊपर दी हुई कई परिभाषाएं
लोकोक्तियों की परिभाषाएँ न होकर प्राज्ञोक्तियों की परिभाषाएँ हो गई हैं । जिसने
कहावतों को 'जन-समूह के ज्ञान श्र चातुरयें के नवनीत' की संज्ञा दी थी, उसने
लोकोक्ति के सम्बन्ध में अधिक सूुभ-बूक का परिचय दिया था ।
(४) निष्क्ष--इस प्रकार कहावत की श्रसंख्य परिभाषाएँ दी जा. सकती हैं
किन्तु किसी निर्दोष परिभाषा की श्रोर इंगित कर देना सरल काम नहीं है। हाँ,
परिभाषाओं में त्रुटियाँ निकालना अ्रवद्य सरल कार्यें है । कहावत के स्वरूप को लक्ष्य
में रखते हुए हम कह सकते हैं कि भ्रपने कथन की पुष्टि में, किसी को दिक्षा या
चेतावनी देने के उद्देद्य से, किसी बात को किसी की श्राड़ में कहने के अभिप्राय
से श्रथवा किसी को उपालम्भ देने व किसी पर व्यंग्य कसने श्रादि के लिए शअ्रपने में
स्वतन्त्र अथ॑ रखने वाली जिस लोक-प्रचलित तथा सामान्यतः सारगभित, संक्षिप्त
एवं चटपटी उक्ति का लोग प्रयोग करते हैं, उसे लोकोक्ति अ्रथवा कहावत का नाम
दिया जा सकता है ।
कहावत का यह लक्षण बहुत व्यापक होते हुए भी सवधा निर्दोष होने का
दावा नहीं करता ।
४. कहावत श्रौर महावरा
कहावतों के ऐसे बहुत से संग्रह निकले हैं जहाँ कहावतों के साथ-साथ अनेक
मुहावरों का भी समावेश कर लिया गया है । कुछ संग्रहकर्ता तो जान-बककर कहावतों
के साथ मुहावरों को भी भ्रपने संग्रहों में स्थान देते हैं किन्तु ऐसे संग्रहों का भी भ्रभाव
नहीं है जहाँ कहावत श्रौर मुहावरे की विभा जन-रेखा स्पष्ट न होने के कारण कहावतों
और मुहावरों का एकत्र सम्मेलन हो जाता है जो श्रवांछनीय है। ऐसी स्थिति में
कहावत्त श्रौर मुहावरे के तारतम्य पर विचार कर लेना आवश्यक है ।
१. रोजमर्रा श्रौर सुहावरा--'मुहावरा' श्ररबी दाव्द है जो 'हौर' शब्द से
बना है । इसका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ परस्पर बातचीत श्रौर एक दूसरे के साथ सवाल-
जवाब करना है । . हिन्दी दाब्दसागर के विद्वान सम्पादकों के मतानुसार “मुहावरों”
लक्षणा या व्यंजना द्वारा सिद्ध वाक्य या वह प्रयोग है जो किसी एक ही बोली या
' लिखी जाने वाली भाषा में प्रचलित हो और जिसका श्रथे प्रत्यक्ष अभिषेय श्रथे से
1. औ8हएप्ड 0 बलाएंबाजिक, ... (एण्ड एव का कजिछा, 2. उ२5)
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