विवेकानन्द ग्रंथावली भाग - 2 | Vivekanand Granthavali Bhag - 2

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Vivekanand Granthavali Bhag - 2  by जगन्मोहन वर्मा - Jaganmohan Verma

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बाबू जगनमोहन वर्मा जी का जन्म सन् 1870 ई ० में हुआ। वे अपने माता पिता के इकलौती संतान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बहुत ही प्रतिष्ठित एवं शिक्षित परिवार में हुआ। वे बचपन से ही विलक्षण बुद्धि के थे। ये हिंदी शब्द सागर के भी संपादक थे। इन्होंने चीनी यात्री के भारत यात्रा के अनुवाद हिन्दी में किया। इनके पास एक चीनी शिष्य संस्कृति सीखने आया जिससे इन्होंने चीनी भाषा का ज्ञान अर्जित किया एवं उसके यात्रा वृतांत का अनुवाद किया। उनके इस कोशिश से हमें प्राचीन भारत के समय के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक को जानने में काफी मदद मिली।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 & रखने की बात है कि वेदांत यह नहीं चाहता कि यह जीवन यह भ्रम का जीवन, यह मिथ्या जोचन श्रादशे के अनुकूल खनाया जाय। परंतु वहद यह चाहता है कि यह मिथ्या जीवन 'त्याग दिया जाय झऔौर तब सच्चा जीवन जो सदा से है, प्रकट होगा और चमकने लगेगा। कोई मनुष्य शुद्धातिशुद्ध नहीं होता यह बड़ी अभिव्यक्ति की बात है। परदा हट जाता है थी आत्मा की वास्तविक शुद्धता झापसे झाप श्रकट होने लगती है। शाश्वत शुद्धि, मुक्ति, प्रेम और बल सब कुछ हमारे ही हैं । । . चवेदांत का यह कथन है कि केवल जंगल वा गुफाओं में ही रहकर कोई इसे साक्षात्‌ नहीं कर सकता, बल्कि मजुष्य किसी दशा में रहे, इसे प्राप्त कर सकता है । हम देख चुके हैं कि 'जिन लोगों ने इस सत्य का झाविष्कार किया, वे गुफाओं के 'रहनेवाले न थे श्रौर न वे सामान्य मजुष्य थे, जिन्हें झवकाश था; अपितु पेसे लोग थे जिनका सारा जीवन काम काज में लगा 'रहता था । इसके झनेक हेतु हैं। वे बड़ी बड़ी सेनाएँ रखते, 'उनका प्रबंध करते, राजसिंहासन पर बैठते और प्रजा के सुर के लिये देखरेख करते थे; शोर यह सब ऐसे समय की बात हे जब राजा ही सबके कर्ता धर्ता थे। छाजकल की तर केवल काठ की पुतली की भाँति नहीं रहा करते थे । फिर भीं उन्हें इतनां अवकाश मिल जाता था कि वे इन बातो को स्रोच सकते थे, इन्हें साक्षात्‌ कर सकते थे श्र मनुष्यों को उनकी शिक्षा दे संकते थे । अब घताइपए तो सही कि यह हमारे




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